" 'पापा' तुम भी इंसान हो"(कविता)
अपनी व्यथा बताते क्यों नहीं
अंतस मन की ज्वालामुखी को दबाते क्यों हो
खुद को उस अग्नि में जलाते क्यों हो
माना की तुम मर्द हो मगर क्या तुम्हें दर्द नहीं होता ?
होता है दर्द , कराहते हो , तड़पते हो और भीतर भीतर खोखले होते हो तुम
भले ही इल्म नहीं है इस बात का
मगर मुझे पता है तुम पीड़ित हो
ये कैसा दंभ है या वहम है कि तुम मर्द हो
तो सहज सरल इंसान नहीं हो सकते
मर्द से पहले एक जीव हो हाड़ मांस का पूतला हो
बिल्कुल हमारी तरह
बस बाहरी संरचना मुझसे भिन्न है
मगर तुम मेरे जैसे ही हो
वो तमाम भावनाएं और संवेदनाएं हूबहू वैसे ही महसूस करते हो
मैं तुम्हारे कंधे पर सर रखकर उतार लेती हूं
तुम भी अपनी परेशानी कह दो ना
मुझमें अधिक है सहनशक्ति
यकीन मानो
तुम्हारे मन का बोझ सहन कर सकती हूं
वहन कर सकती हूं
तुम्हारी ऊर्जा लेकर पली बढ़ी हूं
तुमसे ही सीखा है जंग जीतना
ज़ख्म सहकर मुस्कुराना
और मुस्कुरा कर गम को हवा में उड़ाना ......
बांट लो ना थोड़ा थोड़ा
मेरे हिस्से का दर्द चुराने वाले
थोड़ी तकलीफ़ दे दो ना मुझे
कद तुम्हारा छोटा नहीं होगा
सर मेरा कुछ हल्का होगा
वो मुस्कुराहट तुम्हारी ....
जो 180 डिग्री पर फिक्स हो गई है
उसे आज़ाद कर दो ना
एक बार ठहाके लगाकर
मेरा भ्रम तोड़ दो ना
थोड़ा थोड़ा गम बांटों ना
मेरे दर्द चुराने वाले
कभी खुशियां भी चुरा लो ना ...
खुलकर ठहाके लगाओ ना
एक बार फिर
पुराने दिन लौटा दो ना ......
माना कि तुम पुरुष हो
मगर जन्में तो पहले इंसान ही थें
नन्हा-सा शिशु
जो आज भी तुम्हारे भीतर मचलता है ... और तुम थपकी देकर सुला देते हो
एक बार उसे उन्मुक्त कर दो ना ?
हमारे साथ खेलों ना वो तमाम खेल जो बचपन में संग संग खेला करते थे
मां के मना करने पर भी चुपके से चॉकलेट थमा देते थे
और पकड़े जाने पर हम खूब हंसा करते थें
सोने से पहले दांतों को ब्रूस करवाते थे
और थपकी देकर मीठी नींद सुलाते थे
"पापा " एक बार फिर से हमजोली बन जाओ ना
ठहाके लगाकर हंस दो ना ......
Happy father's day....
ReplyDeleteदीदी प्रणाम 🙏
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