"मेरें हाँथों मैं मोबाईल होता हैं"(कविता)
जब तक मेरें हाँथों में मोबाईल रहता हैं,
मैं भूल जाता हूँ, अपनी बेकारी, अपनी बेरोजगारी,
अपनी नाकामी ।
जब कभी मैं अकेला होता हूँ, एकांत होता हूँ
तो ख़ुद का जीवन सामने होता हैं,
वो उलझा हुआ जीवन, कर्ज में, जिमेदारियों में,
कर्तव्यों से दबा हुआ जीवन,
जब ख़ुद का जिस्म भी भारी- भारी सा लगने लगता हैं,
तब मेरें हाँथों में मोबाईल होता हैं, और मैं भूल जाता हूँ
सब कुछ ।।
जब मरना जीनें से ज्यादा सुंदर और सरल लगने
लगता हैं,
जब अंधेरा आंनद और एकांत सकून देने लगता हैं,
जब आगें एक जर्जर पुल और पीछें एक लम्बी खाई जिसे लांघ
पाने में जीवन ख़ुद को बौना साबित कर देता हैं,
तब मेरें हाँथों मैं मोबाईल होता हैं ।।।
जब रात दिन से भी लम्बी और दुःखदाई हो जाती हैं,
जब नींद किसी करवट पे लुभाती नहीं हैं,
जब दिमांग में असंख्य सवालों का अम्बार बिना जवाब
के चक्कर लगातें हैं,
तब मेरें हाँथों में मोबाईल होता हैं ।।।।
कभी कभी मैं सोचता हूँ गर ये मोबाईल न होता
तो क्या मैं जिंदा होता?
मेरी कविता को अपने पत्रिका में जगह देने के लिए आपका आभार 😊😊
ReplyDeletenice...
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