"मैं"(कविता)
मैं कुछ- कुछ ऐसा भी हूँ,
किसी के नज़रों में भला तो
किसी कें नज़रों में बुरा भी हूँ ।
मुझें परखता हैं यहाँ हर शख़्स अपने चश्में से,
मैं जितना उठा तो उतना गिरा भी हूँ ।।
तु ख़ुद की खामियों की वकालत कर,
मेरें मुकदमें का जज् हो जाता हैं,
मैं बेशक मैं हूँ पर थोड़ा सा तेरा भी हूँ ।।।
यहाँ कौन सहीं और कौन गलत इसका पैमाना क्या,
अगर हूँ थोड़ा सा खाली तो थोड़ा सा भरा भी हूँ ।।।।
चल अब छोड़ मुझें दुनियादारी का पाठ पढ़ाना,
हां हूँ थोड़ा सा ग़वार तो थोड़ा सा पढ़ा- लिखा भी हूँ ।।।।।
जला के आता हैं तु जिसे शमशान में, उसके
तारिफों के पुल बांधता हैं, दो शब्द बोल मेरें तारिफों के,
थोड़ा हूँ मैं जिंदा, तो थोड़ा मरा भी हूँ ।।।।।।
मैं थोड़ा बुरा भी हूँ
Written by तनुज कुमार
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