"मां"(कविता)

 मां के दर्शन से बढ़कर न मंदिर है न गुरुद्वारा है!

मां के बिना इस जीवन में लगता है बस अंधियारा है!

मां से बढ़कर इस धरती पर कोई तीर्थ और पैगम्बर नही होते!

अगर मां ही न होती इस दुनिया में तो ये क्षितिज अम्बर नहीं होते

जिस घर में मां की मूर्ति नही उस घर में कभी स्फूर्ति नही

कितने भी भगवान तुम पूजो होगी उसकी पूर्ति नहीं

कितना भी तुम करो ज्ञानार्जन होगी तुम्हारी कीर्ति नहीं

अरे मां भी ममता की मूरत है कोई पत्थर की मूर्ति नही

जब गरजे मेघ चले आंधियां लकड़ी के भी लाले हों

जब धूपों की हो चिंगारी और पड़े पांव में छाले हों

जब गर्म हवा के झोंको से चूल्हों में है गर्मी तपती

तब मेरे मां के हाथों से अमृत जैसी रोटी पकती

जब शाम को सूर्य ढले तो फिर वो अंधियारों में रहती हैं

वो गर्म हवा के झोंके और हर निशा अग्नि सी लगती है

जब महलों में किलकारी हो तो लोरी वो भी गाती हैं

मुझको तो अमृत पान कराके खुद भूंखी सो जाती हैं

हे जननी तुम जगदम्बा हो तुम आदिशक्ति भगवन्ता हो 

तुम वेद पुराणों की ज्ञानी तुम साक्षात श्रुतिशंता हो

तेरे चरणों में जीवन का मैं कण कण अर्पित करता हूं

मेरे तन का जो तिनका भी बचा तो शीश समर्पित करता हूं

ये धन्य धरा है वीरों की सद्भाव सिखाए जाते हैं

मां ही इस जग की जननी है सत्कर्म सिखाए जाते है

मां से बढ़कर कोई और नही ये ज्ञान बताए जाते हैं

फिर भी वो पापी अज्ञानी मां को वृद्धाश्रम छोड़ कर आते हैं

जब दुनिया की वो हर चीजें अनजानी सी लगने लगती

तब मात पिता के चरणो की वो धूल भी अमृत है लगती

जब कई जन्मों का पुण्य प्रकाशित एक साथ होने लगता 

तब मां के चरणों में ही मुझको स्वर्ग दिखाई है देता

जब दुनिया में सब सोते हैं अपने सपनों में खोते हैं

जब थोड़े से वे बड़े हुए अपने पैरों पर होते हैं

तब मां की उंगली भूल गए अब कुत्तों को टहलाते हैं 

ऐसे तो पुत्र पुत्र नही कुलघाती ही कहलाते हैं

जब अपने ही बेटे से मां अपमान सा सहने लगती है 

आसमान रोने लगता है धरती कंपने लगती है

जब पुत्र मोह में फंसकर मां भूखे पेट ही सोती है 

हिलता है तब सिंहासन और धरती मां भी रोती है 

धन्य धरा के वीर सपूतों कलम मेरी रुक जाती है 

मां पर भी लिखना जो पडा तो शर्म मुझे अब आती है

इस धरती पर उस जगजननी को जो थोड़ा भी अपमान मिले

तो फिर उन पापी अज्ञानी को नरको में भी न स्थान मिले

Written by आयुष पांडे
पिता का नाम ...राजेश पांडेय
माता का नाम ... सुशीला पांडेय
साहित्यिक उपनाम ...आयु
ग्राम... अगहर
पोस्ट.. अगहर
तहसील ..अमेठी
जनपद...अमेठी
प्राप्त सम्मान तथा अवार्ड
जिला स्तरीय स्वरचित काव्य पाठ प्रतियोगिता में पहला स्थान।
विभिन्न कवि समेलनो में काव्य पाठ तथा मंच संचालन का अनुभव

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