"जीवन रूपी कमरे को प्यार से सजायें"(लेख)

 जीवन रूपी कमरे को प्यार से सजायें

यह मानव जीवन जितना सुन्दरतम,आनन्दमय और नियति द्वारा प्रदत्त सर्वोत्कृष्ट उपहार है उतना ही जगन्नियंता ने जटिल भी बनाया है।नाशवान शरीर के साथ भावी वश घटने वाली  हानि, लाभ, जीवन, मरण,यश और अपयश को विधानवश अपने पास रखा है और नौ विकारों(काम,क्रोध,मद,लोभ,मोह,ईर्ष्या आदि दुर्बलताओं) को प्रत्येक के जीवन के साथ छोड दिया है।उसने अदृश्य रूप में ,पर खोजने से परमदर्शनीय  सर्वव्यापकता से अभूतपूर्व,अवर्णनीय आनन्द को सर्वत्र बिखेरा है, इसलिए कि मानव को अनुपम बुद्धि प्रदान कर जीव शिरोमणि बनाया और वह सार्थक प्रयास कर खोजे।अब हमें अपने जीवन रूपी कमरे को प्यार से सजाकर धन्य बनाना है।क्यों न हम इस जीवन रूपी कमरे के दीवारों को छोटे बच्चे के मुस्कुराते हुये चेहरे से भर दें,संवेदना दें दीवारों को,जिनपर कोई मुँह सटाये तुम्हारे न आने तक कोई इंतजार करता है,साथ में पलट कर उन दीवारों को उन उम्मीदों से,जिनसे छूट गई थी"चलता हूँ, कहने की आदत।कमरे की दीवार पर वो थाप देनी होगी जो उस हर टकटकी को आत्मसात कर ले और वे लम्हे और अहसास संजोना होंगे जो कदम कदम पर जिन्दगी के हर आहट को उमंगो की तरह पिरो दे।

Written by ओमप्रकाश गुप्ता बैलाडिला

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

"जिस्म़"(कविता)

"बेटियाँ"(कविता)

"उसकी मुस्कान" (कविता)

"बुलबुला"(कविता)

"वो रात" (कविता)