"हे नारी पहचान तुम्हारी"(कविता)
हे नारी पहचान तुम्हारी बड़ी जटिल है,
कहीं मौन तू धरा की भांति ,
कहीं बहती कल कल धारा हो,
कहीं अंधेरी रात घनेरी,
कहीं सुबह का उजियारा हो।
हे नारी पहचान तुम्हारी बड़ी कठिन है।
कहीं तू दुर्गा कहीं तू काली,
कहीं राधा मतवाली हो ।
कहीं वसुंधरा तू धरती की,
कहीं तू बहती नाली हो ।
हे नारी पहचान तुम्हारी बड़ी जटिल है।
कहीं कली बन आंगन की तुम,
पूरा घर महकाती हो।
कहीं तुम्हारी शक्ति अनूठी,
पूरा ब्रह्मांड रचाती हो।
कहीं तू ममता प्रेम की मूरत,
कहीं दहकती ज्वाला हो।
कहीं तू श्रद्धा कहीं आस्था
कहीं तू बिकती बाला हो।
हे नारी पहचान तुम्हारी बड़ी जटिल है।
Written by मंजू भारद्वाज
nice...
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