"फफोला"(कविता)

जुगनू पे  है दीदा ,

समीक्षा हेतु अकेले रमा ।

मर्दों ने क्या खरीदा ,

रोटियों पे क्या -क्या उपमा ?

गुलाब़ की जिद्दी निविदा ,

मरे ख्वाब़ पे क्षमा ।

जवानी को किया पोशीदा ,

चंदा की दूरी पे सहमा ।

नन्हें तारों पे फिदा ,

अनुभवों को सहेजें मोहतरमा ।

इश्क पे नहीं कसीदा ,

आंसू भी नहीं कमा ।

अभिव्यक्ति दिलों में संजीदा ,

फफोला है न थमा ।

किरदारों से कैसे अलविदा ,

पता कहाँ है शमां ?

कितना आग- धुआं और संविदा -

परवानों पे क्या जमा ?

बेवफा तो नहीं खुदा ,

स़च़ पे न तमतमा ।

बेपानी हो क्या बदा ,

हरियाली का कहाँ तगमा ?

कवि या कविता अलहदा ,

कहाँ फूलों पे नगमा ?

आरोपों पे भौरा- तितली  सजदा ,

 कहीं कंपकंपी या ऊष्मा ।

बोझा आईना तक लदा ,

कश्तियाँ डूबाने हेतु चकमा ।

मीरा-राधा कहाँ कायदा ,

नामों पे कहाँ सुधि सुषमा ?

सबेरा तक क्या यदा-कदा ,

अजनबियों तक क्या सदमा ?

दिनचर्या पे क्या बेकायदा ,

परिंदों तक क्या करिश्मा ?

सूरज कहता किसे उम्दा ,

बंदा का गिरा चश्मा !

मजदूरी में क्या फायदा ,

बादशाहों तक कैदी हाजमा !!

नशा में क्या - क्या अदा ,

लीपापोती से कौन खुशनुमा ?

बदनुमा निशानी न गुमशुदा ,

पौधा लगाने हैं अम्मा ।

देना नाना सिक्कें दद्दा ,

नहीं सुनता है आसमां ।

दूर न रखना गदा ,

टीका किया ढोंगी महात्मा ।

मछलियों को भी गुदगुदा ,

कयूँ समंदर गया शरमा ?

कुत्ता जरा तो बुदबुदा ,

चोरों ने चौकीदारी गमा !!!

माली और मांझी जिंदा ,

मंदिर-मस्जिदों में क्यूँ शुरमा ?

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