"जब से देखा तुम्हे मै बहकनेलगा"(कविता)

 जब से देखा तुम्हे,मै बहकने लगा 

मुझे क्या से क्या,अब होने लगा__


एक मुद्दत से दिल,में थी इक आरजू 

चाँद को मैं देखूं, ये मेरी जुस्तजू

इन अंधेरों से अब,मैं डरने लगा 

               मुझे क्या से क्या __


उनकों चुपके से,मैंने निहारा था जब

उनकीं सखियों ने,हमको बुलाया था तब

मैं तो खुद से ही ,अब शर्माने लगा

              मुझे क्या से क्या __


प्रेम पत्रों से बातें,अब होंने लगी

मन की आशाएँ,अब जगने लगी

अब प्रफुल्लित मेरा मन होनें लगा 

                मुझे क्या से क्या__


अब बिछड़ के मुझे,तुमसे रहना नहीं 

प्यार गर है तो मुझसे,कहतें क्यू नहीं

अब बहाने बहुत,तु बनाने लगा

                 मुझे क्या से क्या__

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

"जिस्म़"(कविता)

"बेटियाँ"(कविता)

"उसकी मुस्कान" (कविता)

"बुलबुला"(कविता)

"वो रात" (कविता)