"जब से देखा तुम्हे मै बहकनेलगा"(कविता)
जब से देखा तुम्हे,मै बहकने लगा
मुझे क्या से क्या,अब होने लगा__
एक मुद्दत से दिल,में थी इक आरजू
चाँद को मैं देखूं, ये मेरी जुस्तजू
इन अंधेरों से अब,मैं डरने लगा
मुझे क्या से क्या __
उनकों चुपके से,मैंने निहारा था जब
उनकीं सखियों ने,हमको बुलाया था तब
मैं तो खुद से ही ,अब शर्माने लगा
मुझे क्या से क्या __
प्रेम पत्रों से बातें,अब होंने लगी
मन की आशाएँ,अब जगने लगी
अब प्रफुल्लित मेरा मन होनें लगा
मुझे क्या से क्या__
अब बिछड़ के मुझे,तुमसे रहना नहीं
प्यार गर है तो मुझसे,कहतें क्यू नहीं
अब बहाने बहुत,तु बनाने लगा
मुझे क्या से क्या__
Written by प्रभात गौर
nice...
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