"बाकी"(कविता)
थका दिया है जीना ।
गुलाब़ फेंका हीं गोटियां ,
फिर फंसी सीधी हसीना ।
आदमी की भी बोटियाँ ,
कांंटों ने खुशियां छीना ।
इश्क की कहाँ टोटियां ,
चेहरे पे क्यों पसीना ?
तवज्जों पहाड़ों की चोटियाँ ,
जहर बाकी कितना पीना ?
सहयात्री बूरका और लंगोटिया ,
लापता मधुशाला का सीना ।
अश्कें पीके क्या किया ,
क्या खाया हरा पुदीना ?
झोपड़ी में टूटी खटिया ,
महबूबा हेतु कहाँ मक्का-मदीना ?
खवाब़ में जुदा चिड़िया -
आखिर अकेले है हिना ?
चंदा देखने में मछलियां ,
किताबी बातें किसने गिना ?
हमारी जिंदगी क्यों पहेलियाँ ,
मृगतृष्णामयी अंगूठी में नगीना ।
आग में जली बेटियाँ ,
भरमाया हमें रखा टीना ।
ढोंगियों की नहीं कुटिया ,
संसर्गी कहाँ है कुलीना ?
भौकने लगी है कुत्तिया ,
दुनिया नहीं बलात्कारी बिना ।
चूहिया से स्वाहा जूतियाँ ,
संचिका में लिखाया मीना ।
दीवारों पे खुट्टी हस्तियां ,
वहीं पे तो आईना ।
समंदर में कहाँ कश्तियाँ ,
साहिलों पे कितना कमीना ?
लहरों की क्या अठखेलियाँ ,
मांझी कहाँ बजाया वीणा ?
चिंता में अब गड़ेरिया ,
बढने लगा है तख़मीना ।
क्या कहें आगे भेड़िया ,
कौन खरीदारी करेगा पश्मीना ?
nice...
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