"कोचिंग संस्थान"(हास्य व्यंग)
अनुशासन के जो परम पुजारी कहलाते हैं बड़े बड़े संस्थानों के
असल में वही अनुशासन बेंच देते हैं बैठकर कोचिंग की दुकानों में
शहर के सेठ जी खोले एक दुकान
और नाम रखे उसका कोचिंग संस्थान
शुरू शुरू में तो धंधा थोड़ा मंद था
क्यूंकि उस समय स्कूल कॉलेज बंद था
जैसे ही जुलाई का महीना आया गुरुजी डमरू बजाने लगे
बच्चे तो बच्चे हैं वे भी जादू देखने जाने लगे
मैं भी एक क्लास में पहुंचा एक नही चार चार गुरुजी डमरू बजा रहे थे
बच्चों को कुछ समझ में नही आ रहा था फिर भी वो ताली बजा रहे थे
मैने एक बच्चे से पूछा यार ये तो अपने कॉलेज के प्रोफेसर हैं
लड़का बोला अरे हां लेकिन यही तो इस सर्कस के जादूगर हैं
महीने में डेढ़ लाख सैलरी पाते हैं
लेकिन जादू दिखाने यहाँ रोज आते हैं
गुरुजी बीच बीच में बातचीत करते और हालचाल पूंछ रहे थे
लड़के भी खड़े हो होकर सेल्फी खींच रहे थे
गुरुजी लडको को समझाने का नया नया तरीका अपना रहे थे
और समझ में न आए तो मोबाइल निकाल कर यूट्यूब पर वीडियो दिखा रहे थे
मैं भी वहां बैठकर सब तमाशा देख रहा था
प्रैक्टिकल में नंबर पाऊंगा ये आशा देख रहा था
धन्य गुरुजी धन्य शिक्षा संस्थान अब ये सब मिलकर हो गई हैं सिर्फ एक दुकान
गुरुजी उस दुकान के इकलौते दुकानदार है
बिगड़ती हुई शिक्षा के वे भी गुनहगार हैं
superb... nice...
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