"माॅ, एक अक्षरधाम है"(कविता)
माॅ,
एक,
शब्द है,
ऐसा शब्द,
जिसके आगे,
सब शब्द,निशब्द।
माॅ,
एक,
स्वर है,
ऐसा स्वर,
जिसके आगे,
सब स्वर,नि:स्वर।
माॅ,
एक,
अक्षर है,
ऐसा अक्षर,
हैं जिसके आगे,
सब अक्षर,निरक्षर।
माॅ,
एक,
शब्द है,
ऐसा अज्ञेय,
न होती उपमा
ऐसा होता उपमेय।
माॅ
में होती,
एक आत्मा,
जिसके आगे सिर,
झुकाते है परमात्मा ।
माॅ,
एक है,
मर्म स्थान,
जिसके आगे,
छोटा सारा जहान।
माॅ,
में होता,
एक उत्सर्ग,
जिसके आगे,
तुच्छ होते है स्वर्ग ।
माॅ
में होती,
निर्मल धारा,
ममता धीरता की,
तृप्त होता जग सारा।
माॅ,
में होता,
निस्वार्थ प्रेम,
होती करुणाकर,
तुच्छ हैं सारे रत्नाकर ।
Written by ओमप्रकाश गुप्ता बैलाडिला
superb... nice.... keep it up.....
ReplyDeleteNice
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