"कुदरत के आँसू"(कविता)
बिलख रही धरती यहां कुपित आसमान है,
बिक रहा आज यहां कुदरत का सामान है।
हवाएं भी बिक रही जल की धार बिक रही,
फल फूल बिक रहे पत्ते की छांव बिक रही।
माँ बाप बिक रहे बच्चे भी बिक रहे ,
सांसे भी बिक रही बिक रही जान है।
दर्शन भी बिक रहा अर्चना बिक रही। ,
बिक रहा आज यहाँ स्वम् भगवान है ।
आदर भी बिक रहा सम्मान बिक रहा ,
आँसू भी बिक रहे मुस्कुराहट बिक रही ।
बिक रहा है आसमाँ बिक रही जमीन है ,
इंसानियत बिक रही कौड़ियों के दाम है।
प्रकीर्ति स्तब्ध है चारों दिशाएं निःशब्द है ,
इंसानियत बिक रही आज सरे आम है ।
आज कुदरत भी रो रही है अपने परिवेश में,
अब खो गयी मानवता अपने इस देश मे ।
Written by मंजू भारद्वाज
Nice
ReplyDeletesuperb... nice.... keep it up.....
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