"राम कौशल्या से ज्यादा कैकयी के"(कविता)

जन्म लिया कौशल्या के गर्भ से

पर राम कैकयी के कहलाए

लाड प्यार था कौशल्या का

पर कैकयी के मन अति भाए।


हर मां की तरह कौशल्या को था पुत्रों से मोह 

पर कैकयी ने प्रजा के लिए चुना था बिछोह

महारानी के लिए तो प्रजा पुत्रों जैसी होती

उनके लिए वो सहर्ष अपने पुत्रों को खोती

राम केवल राजा होते तो कैकयी की हार होती

साक्षात विष्णु अवतार को कैसे पुत्र मोह में बांध देती


खुद लांछन सहकर राम को वन भेजा

तारणहार को जनमानस का तम हरने भेजा

पुत्र वियोग दशरथ की मृत्यु का कारण बना

कलंक  का बोझ कैकयी ने हंसकर स्वयं सहा


धरा को पाप मुक्त कराने कैकयी कलंकिनी बनी

कौशल्या से अधिक प्रिय राम की माता बनी

कैकयी के वचनों में बंध राम मर्यादा पुरुषोत्तम बने

हर काल में , हर युग में सबके वो आदर्श बने ।

Written by नेहा चितलांगिया

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