"प्रहार"(कविता)
कब थमेगा सिलसिला'
मौत के प्रहार का!
हे प्रभु तिनेत्र धारी'
काल के संहार का!
जो यहाँ निर्दोष है'
वो भी है 'डरे हुए!
धैर्य अब बचा नही'
दर्द है 'प्रलाप का!
दूर कही हंस रहा'
काल मुंह फाडे हुए!
बिषम परिस्थिति बनी,
जल रहा दवनाल सा!
मौत ताण्डव करे,
धरा भी अब शून्य है!
अब क्रोध चहुँ ओर है'
कुछ कही थमा नहीं!
गरल विष फैला हुआ,
हर तरफ बस 'धुध है!
रक्त पानी बन चला,
कैसा ये संताप है!
लडे तो किससे लडे"
जिसका न अस्तित्व है!
कुछ तो अब रास्ता दिखा'
मेरे प्रभु तू है कहाँ!
कोई शक्ति ढाल दे,
अस्तित्व को आकार दे!
अब तो अधेरा दूर कर,
प्रकाश ही प्रकाश दे!
Written by रीमा ठाकुर
nice........ superb........
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDelete