"मत कर अभिमान : जीवन,बुलबुला समान"(कविता)
तूने कुछ अपने, सुख सुविधाओं को पाने,
मनोहारी नीली छतरी की, उदार धरा को,
नियति के उपकार और उपहार को, जाने,
कितने बेदर्दी से नाश किया,कुछ पाने को।
नदियों ने इठलाना छोडा, अंधों के जिद पे
भावों ने रचना त्यागा, झूठे वैभव पाने को
विषैली गैसें दी,सरल हवा के पावन मन में,
उर्वरक ने बंद किया,जैवी खाद परम्परा को।
।1।
धरा का सावन छीना,और नभ का नीलापन,
वन के वीरानापन ने छीन लिया आक्सीजन,
संगमरमरी दीवानों ने,तपित किया पर्यावरण,
मानव होके तेरे मन ने तांडव का किया वरण।
मन किस स्तर का जो लाशों का गीध बन गया,
सीता पर शहीद हुए जटायु का नाम डूबा दिया,
मानवता की परीक्षा है,इस जाति का मान बनो,
बुलबुला सा मानव जीवन,इसका सम्मान करो।
।2।
Written by ओमप्रकाश गुप्ता बैलाडिला
nice........ superb........
ReplyDeleteVery nice sir👍👍
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