"जिंदा लाश"(कविता)
हर बार कोशिश करती हूं
आंखों में अश्क छुपाने की
ढिट हो गए है
छुपाए नहीं छुपता
मैं करूं तो क्या करूं
डरती हूं यही सोच कर
प्यार की बगिया लगाने से दोस्ती की
उजड़ न जाए फिर ये कही
मैं करूं तो क्या करूं
भूल गए है अब मुझे
एक बिता हुआ कल जान कर
नहीं हूं आज के काबिल मैं
मैं करूं तो क्या करूं
महका करती थी
खुशियों की बगिया मेरे जीवन में
अब बंजड़ सी हो गई है
मैं करूं तो क्या करूं
छोड़ दिया है बसाना मैंने
दिल की धड़कन में
मैं करूं तो क्या करूं
अब जिंदगी से जी भर गया
क्यू मौत भी आती नहीं
हैरान हूं यही सोच कर
मैं करूं तो क्या करूं
जिंदा होकर भी
मैं जिंदा नही
एक लाश के समान हूं
मैं करूं तो क्या करूं
ऐ जिंदगी देने वाले
तू ही बता
अब मैं करूं तो क्या करूं
Written by #लेखिका_पूजा_सिंह
superb... nice... aapki sabse sarvashreshath rachanao me se ek mujhe lga.... keep it up....
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