"जल है मेरी आस्था"(कविता)

ज ' से  जग है 'ल'  से  लय  हैं

जग की लय है  कल कल धारा,

मधुर दिव्य संगीत बनाकर 

 प्रभु ने  इसे धरती पर उतारा।


बूंद बूंद में आस जीवन की,

अमृत मई ये पावन धारा,

सुनकर दिव्य संगीत मधुर,

झूम रहा है  कुदरत सारा ।


धरती पर  है सागर गहरा ,

देता हिम पर्वत पर पहरा,

नहर नदी नल झील सरोवर ,

सब में जीवन बनकर ठहरा।


जल बिन प्यासी धरती होगी,

ना बादल धरा पर बरसेगा,

इस धरती का जीवन भी,

पल पल जीवन को तरसेगा ।  


जल ही सृष्टि का उद्गम है ,

जल ही है प्रलय का शंखनाद ,

अब तो जागो जग के राही, 

जल ना बन जाए अपवाद ।


इसीलिए हे मानव तुम भी ,

प्रकीर्ति का सम्मान करो ,

प्रकीर्ति ने जो दिया हमे है,

 उसका न अपमान करो।


जल है मेरी आस्था,

जल ही मेरी प्यास,

जल बिन इस जीवन में,

नही आ सकता मधुमास।

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