"गठबंधन"(कहानी)
विषय आधारित कहानी
गठबंधन
तीनों बहुओं को जब इस धनतेरस पर अम्माजी ने चांदी के गुच्छे लाकर दिये तो तीनो अर्थ पूर्ण ढंग से एक दूसरे को देख मुस्कराईं और आँखो -आँखों में कुछ इशारे किये।स्थूलकाय लंबी अत्यंत गोरी -चिट्टी अम्मा बड़ी सी लाल बिंदी आखों में काजल और आगे से लेकर पीछे तक मांग भर कर हमेशा बनठनी रहतीं और सैतालीस की उम्र में भी घने मुलायम काले चमकीले लम्बे बालों की मोटी गुथ बनाती जो नितंबो तक लटकती रहती ।
पिताजी को बेटों ने तो बचपन से माँ के आगे पीछे घूमते देखा ही था सो उन्हें कुछ अजीब न लगता , लेकिन तीनों बहुँऐ सास के आगे -पीछे घूमते ससुर को देख - देख इधर -उधर छुपकर खूब हँसती और मखौल उड़ाती, ससुर का शीलाजीशीलाजी कहना उन्हें सबसे ज्यादा मजेदार लगता लेकिन सास का तीनो बहुएं बड़ा मान भी करतीं क्योंकि सास एक तो तीनो बेटों और बहुओं को प्यार बहुत करती थीं उन्हें जो भी चाहिये मंगवा कर देती थीं , उनकी कोई चाहत नहीं तो जो पूरी न की हो ।दूसरे कभी पति की मुहब्बत और मजनू पने पर खुश नहीं होतीं थीं , दूरी बनाये रखती थीं बहुओं के सामने ।
ससुर भी लंबे चौड़े गोरे चिट्टे खूबसूरत आदमी थे पत्नी के अतिरिक्त दुनिया में किसी अन्य से अधिक सरोकार नहीं था
बेटों से भी नहीं।
ससुर के मजनू पने के अतिरिक्त एक चीज़ और थी जो तीनो बहुओं की गॉसिप का अहम हिस्सा थी वह थी अम्मा की स्थूल कमर में लटकता चाँदी का बड़ा सा घुंघरू वाला गुच्छा जिसे वह कभी स्वयं से दूर नहीं करती थीं इस गुच्छे में एक ही चाबी थी एक दीवार में बनी लोहे की अलमीरा की।
इस गुच्छे को छूने की आज्ञा पति को तक नहीं दी थी शीला ने ... ये वाकया बहुओं ने अपने कानों से सुना था एक दिन
वे तेज आवाज में कह रहीं थींआपने फिर मेरी चाबी का गुच्छा छुआ मैने एक बार स्पष्ट बता दिया था कि जिस दिन ये चाबी आप उपयोग कर लेंगे मै आपकी जिंदगी से हमेशा के लिये चली जाऊंगी ।
शीला ऐसा क्या है जो मै नहीं देख सकता?
ससुर हमेशा की तरह खुशामदी स्वर में बोले।
मै मर जाऊँ तब देखियेगा रोकने नहीं आऊंगी सब कुछ तो दे दिया आपको तन, मन ,धन ,जीवन का एक- एक पल तो क्या एक चीज़ सिर्फ मेरी अपनी नहीं हो सकती बोलिये ...कहे देती हूँ खो देंगे मुझे इस उम्र में, चाहते हैं चली जाऊँ में ?
नहीं - नहीं शीलाजी आपके बिना हम जी नहीं सकेंगे हम वादा करते हैं कभी हम इस विषय में आपसे बात नहीं करेंगे छुएंगे नहीं आपका ये चाबी का गुच्छा ।
मेरे इस गुच्छे पर सबकी नजर है खूब जानती हूँ सभी से कहे दे रही हूँ मेरा मरा मुँह देखेगा यदि कोई भी इसे मेरे जीते जी छूने की कोशिश करेगा यह वाक्य उन्होंने इतनी जोर से कहा कि तीनो बहुऐं जो आँगन में चिप्स बना रहीं थीं आसानी से सुन लें।
बेटे उनके भक्त थे ,होते भी क्यों न बड़े लाड़ प्यार और चिन्ता फिक्र से पाला -पोसा , पढ़ाया -लिखाया और बेटों की मन पंसद लड़कियों से विवाह कराये उन्हें एक सूत्र में बाँध कर रखा कि आज भी संयुक्त परिवार में रह रहे हैं तीनो में बहुत प्यार है।
तीनो बेटे घर खर्च के लिये हर माह माँ के हाथ में पांच -पांच हजार रुपये रख बेफिक्र हो जाते हैं सिर्फ अपने - अपने बच्चों की फीस और पर्सनल खर्च करना रह जाता है।
पाँच हजार पति भी देते हैं इन बीस हजार
हर महीने से खूब अच्छे से खर्च चलता है और बचत से तीज त्योहार धूमधाम से मन जाते हैं। पति की पेंशन का अधिकांश बैंक में बचा पड़ा रहता है।
पति बैंक में थे व्ही आर एस लेकर आराम कर रहे हैं अच्छा - खासा पैसा बैंक हर महीने दे देता है वे दिन भर रूपवती पत्नी के सानिध्य में बिताते हैं।
संयुक्त परिवार का फायदा बेटे- बहू भी खूब समझने लगे हैं, पैसा तो बचता ही है कहीं घूमने जाना है बच्चे घर पर दादा - दादी के साथ रहते हैं, बच्चों की फिक्र नहीं रहती एकल घर में सारे काम स्वयं करने पड़ते यहाँ मिल बांटकर हो जाते हैं ।
जो भी हो अम्माजी का गुच्छा बहुओं के लिये चर्चा और उत्सुकता का केन्द्र बना रहता है ।
क्या होगा अम्मा की अलमीरा और बक्से में जो पिता जी को भी आज्ञा नहीं है देखने की तीनों खिस खिसकर हँस पड़ती हैं अक्सर I
आज अपनी कमर पर तीनो ने तोहफे में मिले गुच्छे बड़े शौक से लगा लिये। अम्मा के गुच्छे के चक्कर में इस बार हमें भी गुच्छे मिल गये छोटी चहक कर बोली।
हाँ पर मौका मिलने पर जरूर देखना है अम्मा ने कितनी दौलत छुपा रखी है
मझली हँसकर बोली।
नहीं सोचना भी मत अम्मा की आज्ञा सर माथे मै तो कभी कोशिश नहीं करूंगीचाहे कितना भी दिल करे बड़ी ने अपनी राय दी।
सही कह रहीं हैं दीदी हमें क्या कुछ भी हो छोटी बड़ी की हाँ में हाँ मिलाई।
मझली तनिक उदास हो गई तीनो में वो अक्सर अलग - थलग पड़ जाती है दोनो हर बात पर एकमत रहती हैं।
मई के महीने बुखार आया तो बेटे पिता को अच्छे डॉक्टर को दिखाकर दवाई दिलवा लाये पता नहीं कैसा बुखार था दो दिन मैं जान लेकर ही गया सोते - सोते चले गये।
बेटे- बहू रो रहे थे पर अम्मा स्तब्ध थीं , न रोई न चिल्लाई ।
नाते रिश्तेदार कोई न था अड़ोसी -पड़ौसी
और बहुओं के घर वाले आये अम्मा ने न चूड़ी तोड़ने दीं न सफेद साड़ी पहनी जस की तस बेटों ने कहा माँ जैसे चाहेंगी वैसे ही रहेगी । बहुँओ की क्या मजाल जो कुछ कहतीं।.
घर में कुछ न बदला सिवाय इसके कि ससुर के शीलाजी - शीलाजी कहने की ध्वनि बंद हो गई औअम्मा की उन्हें झिड़कने की आवाजों का क्रम भी बंद हो गया।
एक दिन अम्मा सो रहीं थीं तीनो बैठीं थीं गपशप के मूड में ...
बड़की बोली बेचारे पिताजी अम्मा की अलमारी देखे बिना ही मर गये ।
तीनों हँस पड़ीं हाँ बेचारे पिताजी।
और ये अम्मा ने विधवा का नियम क्यों नहीं माना।
अम्मा नये विचारों की हैं क्या होगा सफेद साड़ी पहनने से छुटकी ने अपने विचार व्यक्त किये।
जो भी हो एक बात समझ नहीं आती अम्मा तो इकलौती थीं चलो माता- पिता के मरने के बाद कोई नहीं था तो उनकी जमीन - मकान सब बेचकर पिताजी ने इतना बड़ा घर बनाया और साड़ियों का शोरूम खुलवा दिया बेटों को लेकिन पिताजी के कोई रिश्तेदार नहीं हैं क्या ??
पता नहीं बहन हमने तो एक चिड़िया भी नहीं देखी रिश्तेदारों के नाम पर। बड़ी ने अपना ज्ञान उगलते हुए कहा।
ये तीनो भाई भी बौड़म हैं कहते हैं हमने आज तक किसी रिश्तेदार को नहीं देखा। मंझली मुंह बिचकाकर बोली ।
छोड़ो न जिज्जी रिश्तेदार नहीं हैं अच्छा ही तो है आये दिन यहीं रखे रहते।
तीनों की सम्मिलित हँसी के साथ चाबी के गुच्छे के घुंघरू बज उठे।
कुछ महीनों से अम्मा अक्सर सोई रहने लगीं ।
बहुओं को फिक्र हुई बेटों को बताया डॉक्टर ने कहा सब ठीक है चिंता की कोई बात नहीं।
पर वे ठीक नहीं हो रहीं थीं। दिन पर दिन कमजोर होती जा रहीं थीं, चार महीने होने को थे ।
एक दिन बेटे बोले अम्मा हरिद्वार घुमा लायें मन बदल जायेगा ।
हरिद्वार में अम्मा का मायका था वहाँ के नाम से उनके चेहरे पर चमक आ गई।
बड़ा बेटा बहू लेकर गये अम्मा को तबियत खराब थी सो बड़े होटल में रुके व्ही आई पी घाट पर गंगा स्नान करवाया उसके बाद अम्मा ने अपने मोहल्ले के बड़े शिव मंदिर जाने की इच्छा प्रकट की बेटा - बहू तत्परता से उनकी इच्छा पूरी करने तैयार हो गये , चलिये अम्मा ।
कई दिनो पश्चात अम्मा का क्लांत चेहरा खिल उठा वे अच्छे से पहले की तरह तैयार हुईं और बेटे के सहारे कार में सवार हो कर मंदिर की ओर चलीं हसरत से अपने गली मोहल्ले को देखती जा रहीं थीं एकाएक बोलीं रोक बेटा देख ये वाला घर था हमारा अब तो किसी और का है।
बहू बेटे ने देखा तिमंजला घर था ।
जिन्दगी के अट्ठारह बसंत इसी घर में बिताये मैने , और वो आगे दो तीन घर छोड़कर चण्डी काका का घर है उस बड़े मंदिर के पुजारी थे चंडी काका । वे उत्साह से बोलीं ।
इनके घर चलोगी अम्मा ?
राहुल ले चलेगा तो जरूर चलूँगी बेटा , रोज प्रसाद देते थे चंडी काका मुझे।
तो चलो अम्मा राहुल ने कार आगे बढ़ाकर चंडी काका के दरवाजे पर खड़ी कर दी ।
बड़ा सा लकड़ी का दरवाजा था जो खुला पड़ा था अंदर बड़ा आंगन दिखाई दे रहा था और तीनो तरफ कमरे । तीनो बीच आंगन में पहुंचे तो अम्मा ने आवाज लगाई काकाजी - काकीजी देखो कौन आया है आपसे मिलने । वे एकदम बच्ची की तरह बर्ताव कर रहीं थीं ।
चंद पलों में बाईं ओर के कमरे से एक महिला निकली लगभग उन्हीं की उम्र की श्वेत वस्त्रों में चेहरा ऐसा कि देखते ही श्रद्धा से सर झुक जाये।
जी बहन किससे मिलना है शहद सी मीठी आवाज ।
चंडी काका - काकी से Iवे रुक रुक कर बोलीं।
आईये जहाँ खड़ी थी उसके बगल वाले कमरे की ओर इशारा की कमरे चार पांच मूढ़े और दो तख्त पड़े थे पहले की तरह सब जाना पहचाना सा ... बैठिये बहन वे
सम्मान से बोलीं।
अम्मा के साथ बेटा -बहू भी बैठ गये।
काका - काकी अम्मा ने उनकी ओर देखते हुऐ कहा I
अभी आई कहकर वे चली गईं।
कुछ देर बाद आई तो चाय - नाश्ता फल तथा पानी लेकर आईं और टेबल पर रख दीं ।
अरे ये सब ... काका-काकी को बुला देतीं मिलने का बड़ा मन है ।
वे संकोच से बोलीं।
आप शीला है न बहन ?
हाँ पर आपने कैसे जान लिया मै शीला हूँ।
इस घर के हर व्यक्ति के मुँह से बस आपका ही तो नाम सुना है मैने, मेरा नाम ही शीला रख दिया सबने भूल गई कि में श्वेता हूँ ।
शीला की आँखों से अश्रुधारा बह चली तो आँखे उस श्वेत वस्त्रधारिणी श्वेता की भी नम थीं।
कहाँ हैं सब वे बेसब्री से बोलीं ।
आपने बहुत देर कर दी आने में न आपके काका काकी हैं न वे जिनसे मिलने आप इतनी दूर चली आईं हैं वे हैं, सभी ने आपकी बहुत प्रतीक्षा की , कहते थे वह जानती है हमारा ठौर - ठिकाना वो जरूर आएगी मिलने, हम तो मजबूर हैं वह कहाँ रहती है हम जानते नहीं हैं वरना जरूर जाते मिलने ।
शीला की आँखों से गंगा जमना बह रही थी ये सब सुनकर ।
वे तो अंतिम सांस तक कहते रहे न आई,
न संदेसा भेजा इतनी निष्ठुर तो नहीं थी
वह ।
बेटा बहू आश्चर्य से सारी बात सुन रहे थे पर समझ कुछ नहीं आ रह था।
वह मुझे कभी माफ नहीं करेंगें। गहरे शोक के साथ बोलीं।
नहीं शीला बहन ऐसा कभी मत सोचना । ये सब कब हुआ ।
माँ जी पिताजी दो वर्ष पहले एक महीने के फर्क से चल बसे थे।
और इन्हें गये भी चार महीने होने वाले हैं सत्ताईस सितंबर की बात है श्वेता आँसू पौंछती हुई बोलीं। आंखें शीला की भी बह रहीं थीं लगभग उसी समय से तो मन व्याकुल और तन शिथिल सा हो चला, सितंबर से ही तबियत ठीक नही ओह माधव के कारण शायदI
तभी एक नवयुवक ने कमरे में प्रवेश किया जिसे देख शीला चौंक उठी माधव की प्रतिलिपि लग रहा था वह युवक I
बेटा ये शीला बहन हैं तुम्हारे बाबूजी की बचपन की मित्र इन्हें प्रणाम करो ।
सजीले युवक ने झुककर चरण स्पर्श कर नमस्ते की तो सहज ही उनका हाथ आर्शीवाद के लिये उसके सर पर पहुंच गया।
अब चलती हूँ बहन । शीला उठ खड़ी हुईं। श्वेता भी दोनो हाथ जोड़ उठ खड़ी हुई।
माँ बाबूजी और इन्हें आज बहुत प्रसन्नता होगी आप इस घर में आईं हैं यह देखकर ।
दोनों एक दूसरे के गले लग कर रो पड़ी।
उसके बाद कार में बैठ वहाँ से इजाजत ली। होटल पहुंचने के पहले ही शीला के प्राण पखेरू उड़ गये ये बच्चों ने होटल पहुँच कर जाना।
सुबह तक सारे बहू बेटे दौड़े चले आये श्वेता और उसके बेटे को भी बुलाया गया था। बड़ी बहू बहुत कुछ जान चुकी थी फिर भी घर जाकर उस अलमारी को देखना चाहती थी है क्या उसमें सो अम्मा की कमर से चाँदी का गुच्छा निकालकर सम्हाल कर अपने बैग में बंद कर दी।
अंतिम संस्कार के पश्चात सभी दिल्ली वापस आ गये।
बेटों ने तेरह दिन पश्चात् दुकान सम्हाल ली तब तीनो बहुयें पहुंच गईं अम्मा के कमरे में
उस अलमारी को खोला गया वहाँ जो था वह कुछ गुलाब की कलियाँ दोनो की सगाई का एक चित्र होने वाली पत्नी के होने वाले पति को लिखे कुछ प्रेम पत्र जो एक दूसरे से बेइंतिहाँ मुहब्बत करते थे।
एक अंतिम पत्र सारी कहानी कह रहा था जो माधव ने शीला को लिखा था कि दोनों का ब्याह बचपन से तय था और दोनो के पिता परम मित्र । गड़बड़ तब हुई जब दोनो के पिता की दोस्ती किसी कारण वश दुश्मनी में बदल गई और शीला के पिता ने यह रिश्ता तोड़ दिया सगाई के ठीक दो महीने बाद शादी तोड़ी गई थी।
सगाई तोड़ दी और दोस्ती भी दुश्मनी की राह पकड़ ली काका जी ने ।
शीला इन परिस्थितियों हम- तुम पता नहीं एक होंगे या नहीं, बहुत फिक्र लगी रहती है मुझे, ये चाँदी का गुच्छा लाया था तुम्हारे लिये ख़ुद अपने हाथों से तुम्हारी पतली कमर पर पहनाना चाहता था शादी के बाद पर आज तुम्हें ख़त के साथ भेज रहा हूँ मिल जाये तो इसे हमेशा अपने साथ रखना।
उम्मीद करता हूँ ये दुश्मनी खत्म होगी और हम दोनो का गठबंधन अवश्य होगा।
हमेशा तुम्हारा
माधव
तीनो बहुओं की आँखे नम थीं।
Written by अनुपमा सोलंकी
superb.. nice... amazing... story... anupama ji....
ReplyDeleteThnx🙏💐
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