"अंश"(कविता)
जिसे पलकों में
छुपाया था
गोद में पाला था
उतार कर गोद से
चलना सीखाया था
बड़े तसल्ली से छोड़ा है
संसार के बीहड़ जंगल में
विशाल सागर में और
अनंत आकाश में
स्वच्छंद उड़ान भरने को
चलो अपने सफ़र पर
नहीं करना किसी से आस
रखना तुम मुझ पर विश्वास
बंधी हुई है डोर मुझसे
उड़ो तुम बेख़ौफ़ ...............
जब कभी तलब महसूस होगी
मैं मौजूद मिलूंगी तुम्हें
तुम साबित कर देना
अंश हो मेरी
मेरी शिक्षा दीक्षा का प्रमाण बनना
जग में अपना नाम करना .........
मैं पत्थर हूं तुम्हारी नींव की
यथावत रहूंगी
चिरस्थाई हूं
जब भी घेरेंगे गम के बादल
मेरी आगोश में खुद को पाओगी
चलों सफ़र पर पूरे यकीन के साथ
रौशन सारा जहां करोगी
तुम अंश हो मेरी
हर पल जुड़ी रहोगी ....।
Written by सरिता कुमार
nice.....
ReplyDeleteThank you so much
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteवाह क्या बात है बहुत खूब बेहतरीन अद्भुत अविश्वसनीय रचना ❤️👍🙏
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद ।
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