"आह ! जिन्दगी वाह! जिन्दगी"(कविता)
आरोह सी कभी ,अवरोह सी कभी लगे है
ये ! जिन्दगी
जले मन कभी,कभी लगे जलतरंग सी ये ! जिन्दगी
खट्टी कभी , मीठी सी कभी लगे है ये !जिन्दगी
वाह जिन्दगी कभी ,आह सी लगे है ये ! जिन्दगी
खुला आसमान कभी, बादल बन बरसे है ये ! जिन्दगी
मीठी सी गुड़ की डली कभी, नीम की सी निंबोरी लगे है ये ! जिन्दगी
माँ के आँचल सी शीतल कभी जेठ की दोपहर सी लगे है ये जिन्दगी
कभी अच्छी और सच्ची, कभी दुखती रग सी लगे है ये ! जिन्दगी
सपनो को खुली आँखो से देखा किये
हम कभी अपनी सी कभी सपने सी लगे है ये ! जिन्दगी
आह! जिन्दगी
वाह!जिन्दगी
Written by अनुपमा सोलंकी
superb... heart touching....
ReplyDeleteThnx🌺💐
ReplyDeleteThnx💐🙏
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