"आह ! जिन्दगी वाह! जिन्दगी"(कविता)


आरोह सी कभी ,अवरोह सी कभी लगे है 

ये ! जिन्दगी


जले मन कभी,कभी लगे जलतरंग सी ये ! जिन्दगी

खट्टी कभी , मीठी सी कभी लगे है ये !जिन्दगी


वाह  जिन्दगी कभी ,आह सी लगे है ये ! जिन्दगी

खुला आसमान कभी,  बादल बन बरसे है ये ! जिन्दगी


मीठी सी गुड़ की डली कभी, नीम की सी निंबोरी लगे है ये ! जिन्दगी

माँ  के आँचल सी शीतल कभी जेठ की दोपहर सी लगे है ये जिन्दगी 


कभी अच्छी और सच्ची, कभी दुखती रग सी लगे है ये ! जिन्दगी

सपनो को खुली आँखो से देखा किये 

हम कभी अपनी सी कभी सपने सी लगे है ये ! जिन्दगी


आह! जिन्दगी

वाह!जिन्दगी

Written by अनुपमा सोलंकी

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