आत्म मंथन
अपने को खुद से लड़कर इंसान बनाना पड़ता है ,,,
जब वक्त तोड़ता सपनों को,
जब राहें तपाती है तन को,
ऐसे में अपनी पीड़ा को और बढ़ाना पड़ता है।
हाथों में खींची लकीरों में भाग्य जगाना पड़ता है।
अपने को खुद से लड़कर इंसान बनाना पड़ता है,,,,,,,
हैवानो के घेरे में इंसानों की बस्ती है,
दावानल के बीच इंसानियत कहां बची है,
टूटे तरकस पर फिर से बाण चढ़ाना पड़ता है ।
गगन भेद कर अपना स्थान बनाना पड़ता है।
अपने को खुद से लड़कर इंसान बनाना पड़ता है,,,,,,,,
क्या बढ़ते कदम वीरों के वापस लौटा करते हैं,
क्या पत्थरों से टकराकर नदियां राहें बदला करती हैं,
जीवन में अपनी पहचान अपना स्थान बनाना पड़ता है।
अंधेरे को मिटा सके ऐसा दीप जलाना पड़ता है ।
अपने को खुद से लड़कर इंसान बनाना पड़ता है,,,,,,,,
Written by मंजू भारद्वाज
बेहतरीन पंक्तियां
ReplyDeleteधन्यवाद सरिता जी
DeleteThanks
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