"रह प्रगति पथ पर अग्रसर"(कविता)


तूफानों से तू डर मगर ,

पर चलता जा अपनी डगर ,

हौसलों को थाम कर ,

रह प्रगति पथ पर अग्रसर !!

आईनों को सच मानकर ,

अंधेरों को अपना मानकर ,

जुगनूओं सा तू लौ लिए ,

रह प्रगति पथ पर अग्रसर!!


ज्वारों के अंगार सा ,

पानी की बहती धार सा ,

तू राहों से अपनी गुजर ,

रह प्रगति पथ पर अग्रसर !!


जैसे जमीं से ख्वाब आसमान का ,

खुद के होने वाले अपमान का ,

ना छूटे तुझसे कोई कसर ,

रह प्रगति पथ पर अग्रसर!! 

Written by हितेश चतुर्वेदी

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