"राधा की होरी"(कविता)
मैया मोरी मँगा पिचकारी
तंग करें हैं सखियाँ सारी
माखन मिसरी न मोय भावे
तू दे चाहे मटकी सारी।
मैं भी सबसे होली खेलूं
उन पे कारो रंग उड़ेलूं
मन में मोरे दुखड़ा भारी
मैया मोय मँगा पिचकारी।
सबने मिल के मुय रँग डारो
कब को जाने कर्ज उतारो
तू लाला की है महतारी
मैया मोय मँगा पिचकारी।
सखियों के सँग रंग लगाये
राधा कैसे मुझे खिजाये
हँस-हँस के देती है तारी
मैया मोय मँगा पिचकारी।
उबटन कर मोको नहलायो
तूने लाला खूब सजायो
कर दी मेरी रंगत कारी
मैया मोय मँगा पिचकारी।
खूब कही थी रँग ना डारो
थोड़ो अपनो गाँव बिचारो
नहीं चली नैकउ हुसयारी
मैया मोय मँगा पिचकारी।
Written by शिखा गर्ग
उबटन कर मोको नहलायो
ReplyDeleteतूने लाला खूब सजायो
कर दी मेरी रंगत कारी
मैया मोय मँगा पिचकारी।
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