"पुनरावृति"(कविता)
ठहरा हुआ सफर है ,
क्यूं है आदमी जंगी ?
ये कैसा जहर है ,
तस्वीरें क्यूं थीं नंगी ?
कैसे - कैसे जमा कबूतर हैं ,
क्यूँ है आखिर तंगी ?
अंधेरी दुनिया कसर है ,
फंसे हैं क्यूं भुजंगी ?
कागजों पे तेवर है ,
महफिल क्यूं हैं बहुरंगी ?
डूबाता क्या समंदर है ,
अतीतें पुनरावृति पाते फिरंगी !
मौनता तक घर है ,
इश्क क्या है बदरंगी ?
ये कैसा लहर है ,
नकाबों में क्यूं सतसंगी ?
जिंदगी को डर है ,
कहां जमीरें हैं संगी ?
छलिया नजरिया भ्रमर है ,
परछाइयां भी अलबत्ता उमंंगी ।
गोपियाँ अक्षरशः यायावर हैं ,
कलयुगी पीड़ा क्या नारंगी ?
नयन बरसातें अम्बर हैं ,
न कहें - नदियाँ बेढंगी !!
मछलियां तक स्तर है ,
रानी सदाबहार और ढंगी ।
पेड़ों पे बंदर हैं ,
कलियां तक क्या -क्या मंहगी ?
अभिसारिका चंदा प्रश्नोंत्तर है ,
रूपैया से क्या - क्या गूंगी ?
Written by विजय शंकर प्रसाद
बेहतरीन?
ReplyDeleteरूपैया से क्या - क्या गूंगी ?
ReplyDeleteSuperb lines 💕