"नीलकंठ महादेव"
कंठ-कंठ में विराजे नीलकंठ महादेव
झोली मेरी भर देव सभी हैं पुकारते ।
खाये रहें सदा भंग शीश पै विराजी गंग
पारवती लिये संग नंदी को निहारते।
राम मे ही रमें रहें समाधी मे ही जमें रहें
भूल से भी भूल कभी उर में ना धारते।
देवों के देव नागर कहें जिन्हें महादेव
जिन्हें कोई नही तारे उन्हें तुम तारते।
Written by डा० अरुण नागर
Jai.. bhole nath... Har har mahadev...
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