"मनमोहिनी"(कविता)


रंगों के खजाने से चोरी ,

पर्दे यहां रचा  है कबूतर ।

विजेता होने हेतु हैं मुंहजोरी ,

बढा नजारा और हावी सफर ।


कहीं काली और कहीं गोरी ,

चला पत्थरों  तक भावी  लहर ।

कृष्णा संग राधा की डोरी ,

यमुना तीरे है इश्क समंदर ।


मनमोहिनी  जर्रा -जर्रा  तक की थ्योरी ,

अंगों के तेवरो में न जहर ।

राहें गंतव्यों तक अभिसारिका मोड़ी ,

मस्ती में झील और घर -घर  ।


नयनों से सुधा को निचोड़ी ,

नीचे धरा पे लायी अम्बर ।

बातें रसीली की मछलियां थोड़ी ,

पहाड़ों तक हो गुदगुदाये तेवर ।


अब न ख्वाबगाहें हैं लोरी ,

लम्हें फागुनी और कहाँ पतझड़ ?

खुशबू और खुशियां न कोरी ,

वीरों की मर्दानगी पे भ्रमर ।

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