"मनमोहिनी"(कविता)
रंगों के खजाने से चोरी ,
पर्दे यहां रचा है कबूतर ।
विजेता होने हेतु हैं मुंहजोरी ,
बढा नजारा और हावी सफर ।
कहीं काली और कहीं गोरी ,
चला पत्थरों तक भावी लहर ।
कृष्णा संग राधा की डोरी ,
यमुना तीरे है इश्क समंदर ।
मनमोहिनी जर्रा -जर्रा तक की थ्योरी ,
अंगों के तेवरो में न जहर ।
राहें गंतव्यों तक अभिसारिका मोड़ी ,
मस्ती में झील और घर -घर ।
नयनों से सुधा को निचोड़ी ,
नीचे धरा पे लायी अम्बर ।
बातें रसीली की मछलियां थोड़ी ,
पहाड़ों तक हो गुदगुदाये तेवर ।
अब न ख्वाबगाहें हैं लोरी ,
लम्हें फागुनी और कहाँ पतझड़ ?
खुशबू और खुशियां न कोरी ,
वीरों की मर्दानगी पे भ्रमर ।
Written by विजय शंकर प्रसाद
Super
ReplyDeleteVijay Pratap Singh sankargharh prayagraj
ReplyDeleteAti sundar kavita
Superb 👍 amazing 💖
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