"धुंधली सी यादें" (कविता)


कुछ यादें हैं

लेकिन सब आधे आधे हैं

कुछ बचपन की धुंधली सी यादें

लेकिन अभी तक नहीं हुए हैं पूरे


बरसों बीत गए

लेकिन नहीं याद आती है सारी बातें

पूछने पर भी नहीं बाते हैं लोग सारे

अंधेरों में  ही बीते हैं 

 मेरे बचपन सारे


नहीं खेला हैं खिलौनों से 

क्योंकि आगे पीछे थी सलाखें 

दीवारों पर ही लिखकर 

सारे सपने किए हैं पूरे 


नहीं बढ़ाएं है लोगों से दोस्ती की हाथ

क्योंकि सलाखों के अंदर ही काटे हैं अपने बचपन सारे

डर के साए में कैसी होती है जिंदगी

यही बात जाने हैं सारे 


घड़े का खड़ खड़ाना 

गिलासों का बजना

यही थे मेरे मनपसंद गाने 

नहीं सुना हूं लोरी

पता नहीं क्यों बीते हैं 

ऐसे मेरे बचपन सारे

बस है बचपन की धुंधली सी यादें।

Written by #लेखिका_नेहा_जायसवाल

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