"अमर प्रेम"(कविता)


खुद से ज़्यादा तो हमें तुम पहचानती,

    हो। तुम रचनाकार, हो  कलाकार हो।


कलमकार हो शब्दों का तुम खेल हो।

    एक  सुंदर,  लेखिका,  हो।  इसीलिए,

हमनें,  तुमसे  प्यार  किया  चेहरे को।

    नही  बल्कि  तुम्हारी   कल्पना,  ओ। 


दुनिया  को  पसंद,  किया।  एक तुम,

    ही  तो   हो। जो  हमें, अजय,  अमर।

बना   सकती  हो।  अपनी  कविताए,

    नज़्म,  गजलो,  मैं हमेंशा।  के  लिए,

तुम  ही तो हो। जो  हमारा  दर्द  तुम।


    काग़ज़ पर  उतार, सकती  हो बिना।

पढ़े चेहरा  लफ्ज़ो  में पिरोह सकती,

    हो  धुन, बन सकती हो  खामोशियो।

की आवाज बन सकती हो इसीलिए, 

    तो  हमने तुमसे  प्यार   किया।  हमें।


ज़िन्दगी   भर   तुम्हारे  लफ्ज़ो,   मैं।

    ज़िन्दा, रहना है। तुम्हारे,   होठों  पर,

हमें  अमर, रहना  हैं। हर कदम  पर,

    साथ चलना है। मुश्किल कितनी भी,

आये,बिना  डरे मुश्किलों, से लड़ना।


    है। हमें सात  समंदर, पार  करना है।

तुम्हारे एहसासों,  में अमर रहना है।

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