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"धर्म"(कविता)

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धर्म क्या है ? आप  कोई कार्य  या।    किसीका हित करे वही  सच्चा धर्म, जो इंसान को इंसान बनाएं, रखता।    है सही गलत का अर्थ समजाता है। मनुष्य की मानवता स्थिर रखता है।     यदी आप धर्म, और कर्म,  के मार्ग,  पर चलते है। तो  आपकों  ईश्वर से,    हाथ  जोड़कर  माँगने की  जरूरत,  नहीं पड़े गी आपके  कर्मो को देख,    कर आपकी जोली खुशियों से भर, देगा।  धर्म  एक अटूट, विश्वास है।    धर्म है जो हमें एक होकर रहने की, सीख देता है।  धर्म  है  जो  हमारी,     मुलाकात इश्वर, से  करता है। धर्म,  अमर है। धर्म से ही पूरा सँसार है।    ईश्वर  को  पूजने के  तरीके अलग,  हैं बाकी धर्म एक है ईश्वर, एक है। Written by  नीक राजपूत

"बादलों में अपना घर होता"(कविता)

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काँश  बादलों   में  हमारा  घर  होता।    आलीशान महेलसे भी घर बड़ा होता  चाँद तारों से अपने घर को  साझाता।    धरती  के,   शोर  शराबें,  भूलजाता। अपनी नई दुनिया  बादलों  के  ऊपर,    बनाता।  सूरज  की,  किरणों  से   में, घर मे दिप जलाता। चिड़िया कोयल,    से नन्हें दोस्त बनाता, लुका छूपी का। खेल खेलतें हुए बादलों में कही  छूप,    जाता। और बादलों से पूरी दुनियाको, निहारता। तैरते हुए बादलों पर जुला।    जूलता। और  सागर  से थोड़ा  पानी, भरकर  धरती,  की  प्यास,  बुझाता। Written by  नीक राजपूत

"21 मई चाय दिवस"(कविता)

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 आज  जिसका दिन  है जिनकी,  वजह,    से  हमारा  दिन  होता  है  चाय   दिवस, चाय पीने का कोई समय तय नहीं होता।    चाय  सुबह दोपर  शाम देर रात तक पी, सकतें  है हमारे दिन  की शुरुआत चाय।     से होती है। हमारी थकावट को दूर तक,  भगा देती है। दोस्तों  के साथ  पीओ तो।    दोस्ती  गहरी, कर  देती है। चाय  है हर,  घर का सँस्कार, चाय है हमारी सभ्यता।     चाय के दीवाने भारत में ही नही बल्कि, पूरे  सँसार, में मौजूद है जो  चाय पीना।     पसँद  करतें है। चाय  किसीभी मौसम। में  पी सकतें है चाहे गर्मियों  का हो या।    बारिशों  का  किसीभी  मौसम  में  हमें, इसकी गर्म चुस्कियों की रहती है तलब,    तब हो  जाता  है चाय  का स्वाद दुगना। बार-बार  पीने को  हम ढूंढते है बहाना। Written by  नीक राजपूत

"अहंकार"(कविता)

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अहंकार  है एक  बुरी  डकार, जिसनें,  लगाई अहंकार,  की ये  डकार  भूल गया वो  सही, गलत,  की  पहचान,  अकड़,  रखता है। जुबा पे  वो  होकर,  परेशान,  खो  कर अपना  ही, आत्मविश्वास,   भूल   जाता। है रिश्तों  की  मिठास, जिसने,  दौलत और शोहरत को  प्यार,  किया मुसीबतों ने उसकी  ही, पीठ पर वार किया भूल गया। जो अनमोल रिश्तों  का बंधन, मुसीबतों के आने पर हारे गा। वो  इंसान  अनपने,  ही  द्वार, अहंकार, है एक  अंधकार है। उस रास्ते पर चल कर इंसान,  बदल देता  उसूलों  ख्यालात, अहंकारी इंसान को उस का। अहंकार, ही  है।  बड़ा  श्राप,   जिसे धूल  चटा, कर करदेता, है उस इंसान, को पूरा बर्बाद Written by  नीक राजपूत

"बारिश की धुन"(कविता)

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गुनगुना रहीं  बादलों, में बारिश, की धुन बूँद-बूँद में संगीत बाजे, मयूर अपने  पंख फैलाएँ  गाएँ। मधुर गाना बुँदे बरसे कण कण, में  मोति  उभरे  सफेद  रण में। मिट्टी ने अपनी खुश्बू  से सभी।  का  मन  महेकाया  प्रकूति, ने,  अपना  प्यार,  बरसाया, तैरती, हुई जमी, पर कागज़ की नाव।  उतर आई दूर जाकर कहि वो। बरखा,  की  चूनर  से  टकराई, नदियां,  तालाबों में  पानी  नई,  नीर  आई  सँग  ढेरों, खुशियां। लाई छुप गए चाँद, सूरज कहि, बादलों के बीच  इन बारिश में, खो गई  कहि  हमारी  परछाई, सूखे पेड पौधे फूलों की प्यास। बजाई  किसानों  के  खेतों  में, हरियाली  छाई  प्राथना  करतें,  हुए  कहा  ईश्वर, से  तेरी कृपा।  से। अपनी फसल को बेच कर, इस  साल होगी अच्छी  कमाई Written by  नीक राजपूत

"गोलगप्पे"(कविता)

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गोलगप्पे का नाम सुनकर ही सभी के,    मन, में  पानी आ जाता है।  इसे बच्चे, बूढ़े करतें  पसँद खासकर, महिलाओं,    को है सबसे ज़्यादा पसँद खट्टा-मीठा। स्वाद इनका फास्ट-फूड में महिलाओं।     है ये पेहली पसँद आज-कल शहेरों में, कई  तरह के आ गए  नये फास्ट-फूड,    लेकीन गोलगप्पे ही रहा सबकी जुबा। पर  पहली  पसँद, अक्सर  लोग  इसे,     हर शाम, को  खाने  को  करतें  पसँद,  उनेके राज्य  में है इसके अलग अलग,    नाम जैसे पश्चिम भारत  में इसे कहते, है। गप-चुप, उत्तर भारत  में कहते है।    पानी-पूरी,  गोलगप्पे, और   बताशा। पूर्व भारत, में इसे  कहते  है  कुचका।    और देश विदेश में भी लोंग इसे खाने, को  करतें  है  पसँद, और  पहले  तो।    सिर्फ  खट्टा-मीठा,  और  तीखा पानी, जलजीरा,  स्वाद  में  ही  मिलता  था।    पानी-पूरी में आज तो।  कई  तरह  के, स्वाद फ्लेवरो में गोलगप्पे है उपलब्ध। Written by  नीक राजपूत

"गरीब के हालात"(कविता)

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गरीब एक ऐसा शब्द है जिन्हें सिर्फ,     मध्यम वर्ग के लोग समझ सकते है। और अमीर लोग इन्हें कीड़े  मकोड़े,     की तरह कुचल  देतें है। देखा जाये।  संयुक्त राष्ट्र  की रिपोर्ट  के अनुसार,      भारत, में करीबन 35 करोड़ से भी। ज़्यादा लोग गरीब है जो  गरीबी के,    दलदल, में जी रहे  है कई, होते  है।  उनकें भी  ख़्वाब उपर से  ज़िन्दगी।    भी  करती  रूबाब  सड़क  किनारे, फुटपाथों, पर सो जाते भूखें प्यासे।    यहीं है उनका नसीब यहीं भगवान। कोई  रोटी,के  लिए  तरसता, कोई,    परिवार के लिए भोजन  की खोज, गली गली भटकता नर्क  सी बत्तर,    हालात और आँखों उनकी लाचारी, के हजारों  सवालात  न देखें कभी।      ख्वाबमें भी दिन दिखा देती गरीबी, इंसान को अंदर से ख़ामोश पुतला।     बना देती  मंदिर  के  बहार मिलता।  उनकों बैठने का स्थान  एक रूपए,     माँगकर वो बदलेंमें हमें हजारों की। दुआएं देता भगवान तेरा भला करे,      इन चार शब्दो से गरीब उस अमीर, इंसान को खुशियां खरीद कर देता। Written by  नीक राजपूत

"परशुराम"(कविता)

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जिस महापुरुष ने त्रेतायुग में जन्म लिया।  इस धरती को बचाने के लिए कई असुरों।   का वध किया ऐसे महापुरुष, थे  भगवान,    परशुराम कहते है विष्णुजी का है ये छठा, अवतार जो सात चिरंजीवी पुरषो में से थे, सबसे शक्तिशाली जिन्होंने इस धरती पर,   राजाओ द्वारा किये गए अपनी प्रजा और,   अन्य  लोगों, पर हवे  जुल्म पाप अन्याय,  को  रोक ने के लिए उनका विनाश करनें, के लिए इस धरती पर भगवान परशुराम।   जी अवतरित  होना पड़ा परशुराम जी थे,   बड़े शिव भक्त और शिव  के थे परशुराम। मैं संयुक्त गुण जिससे वो बने इस  धरती। के संहारक और  विष्णु, भगवान से उन्हें,   पालनहार, का गुण  प्राप्त, हुआ  क्योंकि,    वो थे ही उन्हीं के अवतार, परशुराम  जी।  की पौराणिक कथाओ के अनुसार  सिर्फ, तीर, चला कर  गुजरात, से  लेकर  केरल,    तक  समुद्र, को  पीछे  धकेल  ते  हुए नई,    भूमि का  निर्माण, किया  थे वो  बलवान। Written by  नीक राजपूत

"स्वार्थ"(कविता)

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ये  दुनिया  सारथी  नही  स्वार्थी  है।   स्वार्थ जो नामसे भी अधूरा शब्द है। दिमाग  में पलने  वाला ऐसा  कीडा,   है जो सिर्फ छल कपट  धोखा देना। ही जानता है। स्वार्थी  लोग  दिखते,   है भोले  लेकीन उनके दिलमें बदले, की आग,  सदा  जलती   रहेती  है।    जो  अपनी  मधुरवाणी,  के  सहारे,  बडी  आसानी  से  लोगों  के  साथ,   छ्ल करलेते है। और  जिसके दिन। की शरुआत ही बूरी सोच से  होती,   है। मीठे  बोल  बोल  कर भोलापन,  जता कर हमें अपने जाल में फसा।    लेते  है।  आजकल  इंसान   इतना,  स्वार्थी,  हो गया  है। अपने खुद के,   लाभ  के  लिऐ अपनों। की परवाह,  नही करता मतलब निकल जाने के,   बाद बड़े  अजीब  से  हमारे  सामने,  पेश आता है। की हम उन्हें पहचान,    ही नही  पाते  जीवन  में रिश्तों को। खत्म  करने  में  स्वार्थ  एक  अलग,    ही भूमिका निभाता है। मोहब्बत से, ज्यादा आजकल  ये दुनिया मतलब,    से चलती है। बिना स्वार्थ  के इंसान, रिश्ता भगवान, से भी नही  रखता। Written by  नीक राजपूत

"कठपुतली"(कविता)

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उंगलियों, का  है   ये  खेल,    धागा, संग, बंधा था  जिन। का   मेल, कलाकारी,  थी।    हाथों की  अनोखी,   जिस,  से मनोरंजन,  की होती थी   शरुआत।   उंगलियों    के, सहारे   होता था  ये  खेल,   जिससे,   महफ़िलो।    में, गूँजति  थी  तालियों   की,    आवाज़   बच्चे   बूढ़े  को,  था  ये खेल  पसँद,  सभी।    का मन  बहलाने, के लिए, करतें थे  नाच गाना  और,   कर्तब होकर खुद ना खुश,  हमारी तर्ह कठपुतली भी।   होना  चाहते, थे  स्वतंत्रत, लेकिन  क्या करे ज़िन्दगी   उनकी बंधी, थी  धागों से,  और अबतो मनोरंजन ही।   था  उसका  जीवन   मंत्र। Written by  नीक राजपूत

"स्वच्छता"(कविता)

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जब तक हम खु द ही  स्वछता के,     बारे में जाने गे  नहीं तब तक हम।  दूसरों को कैसे   समजाएँ  गे  की,      असलमें स्वछता क्या है   क्योंकि, स्वच्छता, है  हमारा  खरा  सोना।    मिलकर  हमें  इस धरतीको स्वर्ग, सा  सुंदर  बनाना  यहाँ वहाँ   हमें     प्लास्टिक  की  थैलिया,  चाय  के,  साधारण  प्याले सूखे   कचरे का।    नहीं  ढेर  लगाना  उन्हें   इक्कठा। करके उनकी सही जगह पोहचाए,     घर  आँगन  को  भी   मोतियों सा।  चमकाए, और   ये   स्वच्छता  की,     बात  हम  समाज  के लोगों   तक, भी  पहुँचाये,  और शहर,  गलियों।    को भी   बागीचों,  की  तरह   हम। इन्हें,  भी  सजाएँ   स्वच्छता,  का    अभियान  चलाकर   हम  देश को। सफलता  को  रास्ते  पर  ले  आए, Written by  नीक राजपूत

"आम मेंगो: केरी"(कविता)

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गर्मी का मौसम आया साथमे मीठे  रसीले।   पसंदीदा फल आम  अपने  संग ले  आया।  आम मेंगो जिसका नाम  सुनते ही  मुँह में,   आ जाता पानी। जिन्हें  बूढ़े  जवान  बच्चे,  करतें पसँद आम है अमृत आम  है  फलों।    का प्रिय राजा आम है  स्वास्थ्य  के  लिये,  लाभदायक  खाने  को  जिसे  मिल  जाये,    वो एक  पल में  खुश  हो जाये  आम को। भारत में राष्ट्रीय, फल और  बंगलादेश  में,   आमको राष्ट्रीय पेड़का दर्जा  दिया गया है। आम का वैज्ञानिक नाम मेंगीफेरा इंडिका।   है पूरे विश्व मे ज़्यादातर आमका उत्पादन,  भारत देश में हो रहा है बिहार के दरभंगा।,   गाँव में एक बाग है जिनका नाम है लाखी, बाग  जहाँ एक लाख  से भी अधिक पेड़,   हैऔर गुजरात के जूनागढ और  तालाला। शहर के आम  मशहूर  है आम में है कई,   तरह  के  विटामिन है  जैसे  विटामिन  a, विटामिन B6 मगन  फाइबर  विटामिन c,   मैग्नेशियम पोटैशियम और कॉपर है जो।  आप की त्वचा और बालों के लिए  बड़ा।   लाभ दाई है आम के  सेवन से खून  की, मात्रा  बढ़  जाती  है  और  गैस  आपच,    जैसी बीमारीसे आपको मुक्ति मिलति है। आम  खाने के सिवाय, कच्चे आम  का।    अचार, चटनी, सिकंजी,चूर्ण आदि रूपों। मे

"घर के बहार एक पेड़ लगाए"(कविता)

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 घर  के  बहार  एक  पेड़  लगाओ। और अपनी  ऑक्सीजन  बढ़ाओ।   क्योंकि ऑक्सीजन  हवा के बगैर, जीवन मुश्किल है। ये हमारे शरीर।   के लिए बेहद हरूरीहै ऑक्सीजन, घर के बहार खड़ा एक  पेड़ साल,    भर में करीबन 18 किलोग्राम धूल। सोखता है। ये एक  पेड़  आपको।    साल भर में  करिबन 650 किलो। ग्राम तकका ऑक्सीजन आपको,   उत्सर्जन कर के देता है। एक पेड़, प्रतिवर्ष, 18 टन से ज़्यादा  कार्बन   डायओक्साइड  को भी  सोखता। है और गर्मियोंमें तो पेड़ औसतन,    3 या इस से अधिक तापमान को। कमकर सकता है पेड़ अगर चाहें,   तो आपके जीवनकी उम्र भी बढ़ा। सकता है  और घर की रौनक भी,   इसीलिए  घर के  बहार  एक पेड़,  लगाए अपनी ऑक्सीजन बढाये।    और अपनी  ज़िन्दगी भी  बचायें। Written by  नीक राजपूत

"करो प्रकुति की पुजा"(कविता)

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इस धरती पर मानव से  पहले,   प्रकुति  का   जन्म  हुआ  था। फूल पेड़ पौधे पहाड़  सरिता।   समंदर  नीला,  गगन, ये  सब, कुदरत का करिश्मा है। जिस,   के बिना  मानव जीवन संभव, नही इसी लिए  करो।  प्रकुति,    की पूजा  क्योकि  प्रकुति ही। भगवान है। प्रकुति  है  सारा।    सँसार प्रकुति  ही  धरती का।  सुंदर सौंदर्य  है। हमें मुफ़्त में,   मिला उपहार है लेकीन  कुछ,  लोग  कर रहे है  प्रकुति  को।    प्रदूषित प्रकुति का  दुरुपयोग, कर इन्हें रहे है इन्हें क्या पता।   प्रकुति ही  जीवन है।  प्रकुति,  के बिना जी पाना मुश्किल है। Written by  नीक राजपूत

"अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस"(कविता)

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अगर नर्स के बारे में कहूँ तो ये भी, भगवान से कुछ कम नहीं है। जब,      अस्पताल में हम किसी बीमारियों।      की वजह से  ऐडमिट होते है। तब, वहीं   होतीं  हमारा।  ख्याल रखने,  वाली  जो  हमारी, देखभाल  और,     हिफाज़त, एक फैमेली मेंबर्स  की,     तरह करती, है  हमारी ज़िन्दगीयों। बचातीं है। साथ  मे शिक्षा भी देती, बीमारियों  से कैसे  लड़े और साथ,     में  मरीजों,का हौसला। भी बढ़ाती,     अस्पताल, के साथ साथ  कई नर्स, तो  मरीज़ो के घर  तक  भी  जाती, जब  तक  मरीज, सभी बीमारियों।     मुक्त न हो जाए मरीज का स्वास्थ्य,     ठीक न  हो जाए  तब तक  उनकी,  देखभाल  का  ज़िम्मा,  भी उठाती, अपनी ज़िन्दगी  को दाव पर लगा।      कर हमारी  ज़िन्दगी,बचाती अगर,     डॉक्टर भगवान है तो नर्स  देवी है। Written by  नीक राजपूत

"क्या कोरोना की तीसरी लहर आयेगी?"(कविता)

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सभी की  जुबा पे है ये सवाल क्या,     तीसरी   लहर  भी  आयेगी?  कल, हजारो की  गिनतियों  में केस  आ।    रहें थे आज एवरेज एक लाख, या।  दो लाख, केस आ रहे  है भारत में,     अब क्या इससे भी  मुश्किल  घड़ी,  आएगी? क्या वैक्सीन काम करेंगी?    क्या  वेक्सिनेशन, ही  है ?  इसका,  सही इलाज या लोकडाउन है? इस,    का सही इलाज? इस तरह के कई, है सवाल  जो  हमें  इस   महामारी।     कोरोना  काल  सता  रहें  है  अगर,   अबभी हमनें सावधानी नही बरती।     तो तीसरी  लहर को आने से  कोई,  नहीं रोक  पायेगा और  इसके हम।     खुद ज़िम्मेदार  होगें  क्योंकि  कुछ,  लोग   यह   कोरोना   वायरस  को।     मजाक समज रहेहै अपने मुँह  पर, मास्क नहीं लगारहे है  सड़को  पर,    घरकी बहार खुले आम  घूम रहे है। इसलिये सरकारी गाइडलाइंस का।    पालन करे मास्क लगायें हर जगह, चल रहा  है  वैक्सीनेशन तो  बिना।     डरे वैक्सीन लगवाए और ज़िन्दगी। बचाये घरमे रहें कर  ये बात दुसरो।    को  भी  समजाये   और   कोरोना, को मिल कर  इस  देश  से भगाये। Written by  नीक राजपूत

"अंधश्रद्धा"(कविता)

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अंधश्रद्धा जिसके नाम  के आगे भी अंध,    आता है उनमें में  श्रद्धा कैसी  आज हम,  21 मी सदी में जी रहे फिर भी कुछ लोग। आज भी अंधश्रद्धा पर  विश्वास, कर रहें,    और अनपढ़ नही बल्कि पढेलिखे  लोग।    भी इसका शिकार, हो  रहें है। किसी भी, मुश्किल आने  पर  बुरी नज़र का  दावा।  करतें है। या  किसी  तांत्रिक  बाबा  का।    साहारा लेते है। जो झाड़फूक, लगा कर,    हमारी मुश्किलो का हल निकाल देता है। ये सब एक अंधविश्वास, है हमारा हमारी, मूर्खता है। जिसे हम  खुद अपने  दिमाग,    में  जन्म  देतें  है। क्योंकि  वहम की या।     अंधश्रद्धा, की  नहीं   कोई  दवा हमारी।  ज़िन्दगी में आये  मुश्किलें, तो  करे सब, ईश्वर से दुआ, क्योंकि  ये सारी सृष्टि  है।    ईश्वर  ने बनाई  उनकी  दी हुई अनमोल,    शक्तिया हम सबमें है  समाई अगर हम।  चाहे  तो पूरे  ब्रम्हाण्ड को नियंत्रित कर,  सकतेंहै लेकीन ये बात कोई सोच नहीं।    रहा और हम  चले जा रहें है  अंधश्रद्धा,    के मार्ग  पर अंध  बन  कर और  हमारे, दिमाग को सौप देतें है किसी  तांत्रिकों। के  हाथ मे  जो हमें  बाधा  के  धागें में,     बांध  कर हमें भूत  प्रेत के नाम पर वो।     अ

"मातृ दिवस"(कविता)

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माँ का कोई दिन  नही   होता।    बल्की हर दिन माँ  का  होता। है। एक शब्द  नहीं माँ  बल्की,    पूरा सँसार है माँ तेरे  नाम  से, है मेरी पहचान माँ  तू  ही तो।    है   मेरा  भगवान  बचपन  में,  जुले पर बिठाकर सुनाती थी।    लोरी  तो  कभी  अपनी  पीठ, पर  बिठाकर  मुझे   समझाई,    प्यारकी मीठी बोली  मेरी हर, चिंता   को  दूर  करने  वाली।    सदा रहे मेरे होठों पर माँ की। लाली  माँ  है  हर  दुःख  की।     दवाई, माँ से जीवन  की  हर, सच्चाई घुटनों को रेंगते  हुए,    पैरों से न जाने में कब  बड़ा। हुआ बचपना अभीभी भूला।     नहीं मैं जब भी उदास हुआ। माँ की गोद मे जाकर सोया। Written by  नीक राजपूत

"कैसा ये रोग है"(कविता)

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चारों तरफ है सन्नाटा सड़के  सुमसान।    पूरे विश्वमे फैला कैसा रोग है भगवान। जानवर   सब   बेपरवाह  घूम  रहें  है।    और मानव बेबस होकर घर मे कैद है,  करनी से सभी से दूरी क्या  करें कैसी,    है। ये मजबूरी, हाथों  छुए बिना काम।  चनलाना है। हाथ जोड़  कर दूर से ही,    हमें  इस  समय सब  काम  लिपटा है। किसी को छूना  पड़  सकता  है भारी।    चल रहीं क्योंकि कोरोनाकी महामारी। अजीब सी   बीमारी  आई   जिसकी।     दवा  सिर्फ दूरी है।  हमें  खुद  से  भी, बचना है।  दूसरों  को  भी  बचना  है।    इस बीमारी  से, हमें पीछा  छुडवाना। है। इस बीमारी से घरों, में कैद है जो।    ज़िन्दगी उन्हें मिलकर हंमे बचना  है।  इस जंग को हमें मिलकर जितना  है। Written by  नीक राजपूत

"मजाक"(कविता)

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मजाक अगर  आपके साथ कोई करे। तो बुरा  अगर आप  किसी  के  साथ।  करे  तो  अच्छा।  इसीलिए आप  को। सहन करनें की शक्ति हो। तभी आप। दूसरों  के साथ  मजाक उड़ाये या तो। मज़ाक करें। मज़ाक हद से  ज़ियादा।  हो जाये तो  भारी भी पड़  सकता है।  आपको।  हर  दूसरा  व्यक्ति आपको।  मजाक में सब कुछ  सटीक  भाव से।  कह देता है। जो दरसल  जो आपको। बताना तो चाहता है लेकिन कह नहीँ। सकता। इसीलिए  मज़ाक करो तो ये। ख्याल  रखना  ज़रुरी है। आप  कहि। अंजाने में उनकें जज्बातो  से तो नही। खेल रहें हो  ना  आप  क्योंकि इससे। रिश्तों   में   दूरियां   बढ़   जाती    है। Written by  नीक राजपूत