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"धुंआ"(कहानी)

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धुंआ रात के दो बजे थें मैं बालकोनी में खड़े होकर बाय कर रही थी अपनी बेटी को चार बजे की फ्लाइट थी एयरपोर्ट पास में ही है लेकिन उसे पहले रिपोर्ट करना होता है । सातवें महलें से नीचे पहुंच गयी थी ड्राइवर ने सूटकेश पीछे रखा और गेट खोला । इशू ने मुझे बाय किया और बैठ गई । मैं पलट कर कमरे में आने को थी कि बगल वाली बालकोनी पर नजर टिक गई आंखें खुली की खुली रह गई । निशा सिगरेट पी रही थी और छल्ले बना बना कर उड़ा रही थी । खोई खोई सी न जाने किस शुन्य में कुछ तलाशती हुई आंखें जमाई रही उसे यह एहसास तक नहीं हुआ कि मैं खड़ी हूं । शायद किसी उलझन में है , कोई तनाव , कोई परेशानी जरूर है वरना मुझे देखने बाद चुप नहीं रहती । "हाय आंटी " इतने प्यार से बोलती तो मेरा मन भी आनंदित हो जाता । जब भी इशू ड्यूटी पर रहती और निशा घर पर तो हम साथ साथ खाना खाते थें । कभी वो कुछ बनाकर ले आती , कभी इसी एड्रेस पर आर्डर कर देती या कभी मेरे किचन में ही खुद से कुछ बनाकर खिलाती । मुझे बिल्कुल काम नहीं करने देती । निशा पड़ोसी भी है और एक ही एयरलाइंस में जॉब करने की वजह से कलिग है लेकिन मेरे साथ जिस तरह रहती है जैसे वो भ

"इंतजार"(कहानी)

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शिमला के माल रोड पर रितेश बहुत संभल संभल कर कार चला रहा था । पहली बार ऐसी घुमावदार सड़कों का पाला पड़ा था । उसने देखा दोनों तरफ  बड़ी अच्छी हरियाली थी । खुशगवार मौसम हसीन वादियां ऐसे में एफ एम पर गाना बजने लगा किसी नज़र को तेरा इंतज़ार आज भी है ...... और ऐतबार फिल्म की शूटिंग भी शिमला की है । कुछ पल के लिए उसका ध्यान इधर उधर हुआ और देखते ही देखते दुर्घटना हो गई .... एक वृद्ध महिला कार से टकरा गई । ग़लती उस महिला की ही है लेकिन जनता कार सवार को ही घेरती है और सौ बखेड़े खड़ा कर देती है । जल्दी से ब्रेक लेकर गाड़ी रोकी और उस महिला को उठाकर देखने की कोशिश की कहीं लगी तो नहीं ? मगर उठाते ही वो झूल गई .... बिल्कुल फिल्मी स्टाइल में ..। चोट तो कहीं नहीं लगी थी लगती भी कैसे कार से दूर वो गिर गई थी शायद डर से हर्ट अटैक आ गया होगा ? जो भी हो यहां से लेकर किसी हॉस्पिटल में तो जाना ही होगा फिर इनके मोबाइल से इनके घर पर सूचना देनी होगी । कुछ लोग इकट्ठे हो गए पुलिस से पहले ही तहकीकात शुरू कर दी थी वो तो अच्छा हुआ किसी ने हॉस्पिटल का रास्ता बता दिया और बिना देरी किए हाॅस्पिटल में एडमिट किया इलाज भी श

"गठबंधन"(कहानी)

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विषय आधारित कहानी गठबंधन तीनों बहुओं को जब इस धनतेरस पर अम्माजी ने चांदी के गुच्छे लाकर दिये तो तीनो अर्थ पूर्ण ढंग से एक दूसरे को देख मुस्कराईं और आँखो -आँखों में कुछ इशारे किये। स्थूलकाय लंबी अत्यंत गोरी -चिट्टी अम्मा बड़ी सी लाल बिंदी आखों में काजल और आगे से लेकर पीछे तक मांग भर कर हमेशा बनठनी रहतीं और सैतालीस की उम्र में भी घने मुलायम काले चमकीले लम्बे बालों की मोटी गुथ बनाती जो नितंबो तक लटकती रहती । पिताजी को बेटों ने तो बचपन से माँ के आगे पीछे घूमते देखा ही था सो उन्हें कुछ अजीब न लगता , लेकिन तीनों बहुँऐ  सास के आगे -पीछे घूमते ससुर को देख - देख इधर -उधर छुपकर खूब हँसती और मखौल उड़ाती, ससुर का शीलाजीशीलाजी कहना उन्हें सबसे ज्यादा मजेदार लगता लेकिन सास का तीनो बहुएं बड़ा मान भी करतीं क्योंकि सास एक तो तीनो बेटों और बहुओं को प्यार बहुत करती थीं उन्हें जो भी चाहिये मंगवा कर देती थीं , उनकी कोई चाहत नहीं तो जो पूरी न की हो ।दूसरे कभी पति की मुहब्बत और मजनू पने पर खुश नहीं  होतीं थीं , दूरी बनाये रखती थीं बहुओं के सामने । ससुर भी लंबे चौड़े गोरे चिट्टे खूबसूरत आदमी थे पत्नी के अतिरि