Posts

Showing posts with the label कवि महराज शैलेश

"सर्द ऋतु"(कविता)

Image
सर्द हवाओं का डेरा था।। सामने घनघोर घनेरा था।। मैं कांपता हुआ खड़ा था।। एक बल्ब की रोशनी से ढका था।।  जैसे ये ठंड मुझे, जमा देने वाला था।। इस रात में मै बे सहारा था ।। वो भयानक ऐसा मंजर था।। सर्द ऋतु का वो मौसम था।। एक हवेली, जो दरवाजा बंद था।। मगर शायद उसमे कोई न था।। चारों तरफ सिर्फ अंधेरा था ।। बस दरवाजे पे वो बल्ब जल रहा था।। उसी की तरफ मैं बढ़ रहा था ।। मैं बुढा लाचार एक पिता था ।। मेरे अपनो का ही मुझपर ये कहर था।। मेरा ही घर, मेरे लिए घर न था।। एक उम्मीद की किरण वो था।। वृद्धा आश्रम के सामने मैं खड़ा था।। कंप कपाते होंठो से वो बोला था।। पिछली सर्द ऋतु में मैं यहाँ खड़ा था।। ये जुबाँ वालो का शहर था ।। जहाँ दर्द में बहुत सर्द ऋतु था ।। Written by  कवि महराज शैलेश

"मोरे पिया"(गीत)

Image
अबकी सावन जमके बरसे, मोरे पिया मिलन आ जाये।। ऐसा शमा कहाँ, जो इस धरती पर।। सोंधी मिटटी की खुशबू, हर एहसास में प्यार ।। बादलों का फिर बरसना, रिमझिम फुहारों में भीगना।। गोरी का मनभावन पिया, पिया की सजनी का प्यार।। ऐसा मिलन होवे सावन में, एक पिया और सजनी का।। मोरे पिया मोरे आँगन में ,मैं बैठी  पिया को देखु निहार।। मोरे अँगना मोर नाचे झूमे, मैं तोर बलैयां लू उतार ।। अबकी सावन जमके बरसे, मोरे पिया मिलन आ जाये।। मैं सिमटी सी दुल्हन सेज पर, पिया मोरे करे मुझे दुलार।। अबकी सावन जमके बरसे,  मोरे पिया मिलन आ जाये।। Written by  कवि महराज शैलेश

"मैं नर्म हूँ"(कविता)

Image
फासले मिटाना जरूरी है।। रिस्तो को बचाने के लिए।। न तेरा दोष न मेरा दोष।। सच को सामने लाने के लिए।। न तूने कहा न मैं ने सुना।। गलतफहमी मिटाने को।। उठते ही आईना देखता हूँ।। खुद को सही बताने को।। रिस्तो की डोर नाजुक हैं।। मुझे संभालने दो।। मैं नर्म हूँ ,झुक जाता हूं।। रिस्तो को बचाने को।। उलझ गए कई रिश्ते।। न झुकने वालो के।। दूरियां बढ़ गयी देखो।। झूठ बोलने वालों के।। रिस्तो का कोई मोल नही।। ये बिकते नही बाजार में।। किसी भी हालत में खरीद ले।। इतनी भी दौलत नही तेरे पास में।। संभल जाओ मेरे एहसास ।। अब भी वक़्त काफी है।। तन्हा उम्र काटना मुश्किल है।। ये बात उन तक पहुचानी है।। मुस्कुराने की वजह तुम हो।। ये जिस्म तो रूहानी है।। ये बात तो मैंने ही बताया है।। रिस्ता तुमने नही मैंने निभाया है।। Written by  कवि महराज शैलेश

"आर्यव्रत हूँ"(कविता)

Image
न पढ़ा करो अख़बार  न टी वी देखा करो।। दंगो का दौर अभी ख़त्म नहीं हुआ ।। इंसानियत को अभी और शर्मिंदा होने दो।। एक मै ही नहीं जहाँ में मेरे हौसले पस्त होने दो।। मुझमे ही समाज है मुझे समाज में रहने दो।। मेरा मान न गिरा तू मेरा भारत महान रहने दो।। आर्यव्रत हूँ मगध भी मै था मुझे भारत अब रहने दो।। मुझे गर्व है अपने अभिमान पर मेरा स्वाभिमान बना रहने दो।। कितने संग्राम देखे है मैंने मुझे दुखी तुम रहने दो।। आज फिर वही संग्राम  तुम फिर मत होने दो।। हरबार मुझे जख्म देते हो मुझे अब जख्म रहने दो।। मै अब बड़ी मुश्किल से तना हूँ मेरी प्रजा को अब सुखी रहने दो।। Written by  कवि महराज शैलेश

"वो दिन"(कविता)

Image
कहाँ गये वो दिन जब टिकोर  (कच्ची अम्बी) थोड़ा करते थे। कहाँ गये वो दिन जब शुबह लेटे-लेटे  ही पंछियों के झुंड को गिनते थे। कहाँ गये वो दिन जब  महुआ बीनने जाया करते थे। कहाँ गये वो दिन जब  लकड़ी छुवल खेला करते थे। कहाँ गये वो दिन जब  नमक, तेल ,प्याज ,रोटी , गुड़ रोटी ,खा के भी खुश रहा करते थे। कहाँ गये वो दिन जब  स्कूल तख्थी लेकर जाया करते थे। कहाँ गये वो दिन जब सरहरी की कलम ,स्याही से लिखा करते थे। कहाँ गये वो दिन जब  मेले में जाने की जिद किया करते थे। कहाँ गये वो दिन जब  छुट्टियों में नानी के घर जाया करते थे। कहाँ गये वो दिन जब चाँदनी रात में परछाईं-परछाईं खेला करते थे। कहाँ गये वो दिन जब मटर के झलसिं पे बैल चला करते थे। कहाँ गये वो दिन जब अपने बगियाँ में झूला, झूला करते थे। कहाँ गये वो दिन जब शुबह -शुबह ख़रगोश को देखा करते थे। कहाँ गये वो दिन जब इतने खुश सब लोग रहा करते थे। कहाँ गये वो दिन जब महुआ के रस की कतली खाया करते थे। कहाँ गये वो दिन जब शाम को बाबू जी घर आया करते थे। कहाँ गये वो दिन जब बाबू जी से डर कर घर मे छुप जाया करते थे। कहाँ गये वो दिन जब दीपावली पर दीप जलाया करते थे। कहाँ गय

"हम दीवाने"(कविता)

Image
देखा तुम्हे दिल से निकली हाय। अप्सरा सी खूबसूरत हो तुम।। देखो चाँद निकलकर आया है आज।। नजर भरकर देखता हूँ तुम्हे।। कैद कर लूं तुम्हे अपने आँखों में।। पर पलके भी झपकती नहीं आज।। हम दीवाने मुशायरे है जनाब आपके।। थोड़ी इज्जत बक्श दोगे जो हमें।। इस महफ़िल में सर झुका देगें आज।। मेरे वो जो सनम अकेले बैठे है ऐसे।। दीवाने खाश नजरों से देखें तुम्हे बस ।। ये उदासी चेहरे पे तुम्हारे कैसी है आज।। आज न शिकवा करो हमसे तुम दिलरुबा।। धड़कन धड़कने दो,दो जिस्मों में तुम ।। आओ रूह को हम एक कर देअपने आज।। Written by  कवि महराज शैलेश

"फगुआ"(कविता)

Image
तरह तरह के रंग, खुशियों की बौछार। रंग डालो मीत पर,थोड़ा लेके के प्यार।। होली के रंग संग पिया, फगुआ खेलत बहार। भीगी मोरी चोली सजनवा,मोहे छेड़े संग गुलाल।। आज न बच पावे गोरी, हम फगुआ  खेलब आज। होली के रंग डालब, भिगों देब चोलिया तोहार।। मेरा,श्याम देखो राधा, तू मन मीत हमार। अबकी फगुआ खेलब राधा, मथुरा व्रन्दावन धाम।। धूम मची बरसाने में,शुभ दिन आयो आज। कान्हा मेरो होली खेले,संग साखियों के साथ।। मीरा के रंग में कान्हा,प्रेम समर्पण आज। खुद भीगी है बावरी, कान्हा को ढूंढे  आज।। छलिया तो है पास खड़ा,नैनो को छल के आज। खुद तो सब को देख रहा,खुद अदृश्य है आज।। छुप छुप के रंग बरसावे,मोहे मिल जावे आज। माखन का भोग लगाऊँ,सुन विनती  मेरी आज।। होली का रंग लगा के,कान्हा अंग लगा ले आज। मेरी सफल साधना हो जाये,मुझको रंग डाले तू आज।। Written by  कवि महराज शैलेश

"बसंती पवन"(ग़जल)

Image
  उमंग में तरंग में,बादलों के संग में। उड़ जाऊ मैं ऐसे,बसंती पवन में।। रोके न कोई ,टोंके न कोई। फिसल जाऊ चाहे,पगडंडियों में।। नजर सामने है,पेड़ पौधे जमी में। खुला आसमा है,हुश्न उतरा जमी में।। मनोहर छटा है,हुश्न की ऐ अदा है। खेतों में लहराए, फसल भी हरा है।। कमरबंद लहरा के,हुश्न इठला के। मिलने चली है,मुझे वो बुला के।। मोहब्बत में देखो,सुध बुध भुला के। दिल को मेरे वो,दिल से लगा के।। परछाइयों से,चेहरा छुपा के। जल्दी में जैसे,खुद को बचा के।। पगडंडियों से,दौड़ लगा के। चला इश्क़ देखो, छुप छुपा के।। खेतों में पानी,जुल्फों में रवानी। महलों की रानी,बनी वो दीवानी।। है चित्र में जो,लिखी वो कहानी। लगती है जैसे,परियों की रानी।। है खूबसूरत, मगर ये जवानी। चेहरा जो दिखता,मैं लिखता कहानी।। तेरे रूप का मैं, करता बखानी। सवंर जाती मेरी,रूठी जिंदगानी।। Written by  कवि महराज शैलेश

"झूठी मोहब्बत"(कविता)

Image
  दर्द काफी है और कितना सताओगे। क्या मेरी जान-जान लेकर ही जाओगे।। अब फिर बस करो नही तो पछताओगे। मुझे दफना कर फिर खुद जी पाओगे।। अब और कितना खुद को गिराओगे। बोलो फिर नजर कब हमसे मिलाओगे।। शर्म हया छोड़ फिर बेवफा कहलाओगे। कब्र पर मेरे फिर मेरी वफ़ा लिखवाओगे।। झूठी मोहब्बत कब तक फिर दिखलाओगे। मेरे मरने के बाद फिर दिल किसी और से लगाओगे।। बस की बात नही तुम क्या मोहब्बत निभाओगे। छोड़ कर हमें फिर देखेंगे तुम कैसे रह पाओगे।। Written by  कवि महराज शैलेश

"बेटियां"(कविता)

Image
शंभल जाओ ऐ चमन वालो।। की बदल गई हवा है।। बेटों की थी, अब बेटियों की दुनिया है।। अधिकार भी ,बराबर का अब हिस्सा है।। मैं नही अबला न ही मैं बाला हूँ।। खुद के पैरों पे खड़ी एक ज्वाला हूँ।। मैं राधा तेरे मन की,एक रूप दुर्गा माँ हूँ।। काली का भी रूप मेरा,मैं ही ब्रह्माण्ड हूँ।। मैं ने जन्मा इंसान को,दर्द से बेहाल हूँ।। हलक में चीख खून से लालमलाल हूँ।। तुम इंसान देखो मैं कितने बुरे हाल में हूँ।। मैं तुम्हारी बहन , बेटी , माँ , ही तो हूँ।। Written by  कवि महराज शैलेश

"मन का सार"(कविता)

Image
  श्रद्धांजलि @43 फिल्मिस्तान Delhi अग्निकांड मै मजदूर हूँ साहब मुझे यू ही तड़पने दो, मै मजदूर हूँ साहब मुझे यू ही जलने दो, मैं मजदूर हूँ साहब मुझे यू ही मरने दो, तंग गालियाँ हो  या बहुमंजिला इमारत, क्या फर्क पड़ता है यू ही शमशान बनने दो, मै मजदूर हूँ साहब मुझे यू ही मरने दो, तुम महल बनाओ तुम राज करो, तुम घूमो विदेश हमे यू ही जलने दो, मै मजदूर हूँ साहब मुझे यू ही मरने दो, क्या नेता,क्या अभिनेता अवॉर्ड वापसी, भाषण बाजी करने दो इंसानियत को मरने दो, मै मजदूर हूँ साहब  मुझे यू ही मरने दो, तुम औरों की बात सुनों तुम मुनाफा कमाते रहो, हम तो गरीब है साहब हमे यू ही जिन्दा जलने दो, मै मजदूर हूँ साहब मुझे यू ही मरने दो, कोहराम मचा है  मेरे घर पर, तुम पार्टी करो साहब हमे मातम करने दो, मै मजदूर हूँ साहब मुझे यू ही मरने दो,  मुझे यू ही मरने दो मुझे यू ही मरने दो  । Written by  कवि महराज शैलेश

"हाजिर जवाब"(कविता)

Image
  न मैं दीवाना हूँ तेरा ।। न पागल समझ मुझको।। तू कवि मशहूर है जरा ।। मैं दुनियां में नजर बंद हूँ।। तेरे अफ़साने शहरों में ।। मैं गलियों में भटकता हूँ।। तू दिलो पे राज करता है।। मैं दिलो को जीत लेता हूँ।। समय पे नाज है तुमको।। मैं समय को मोड़ लेता हूँ।। मैं उस बगियाँ का माली हूँ।। जो खुद को सिंच लेता हूँ।। मैं महलों में नही रहता।। मगर मैं चैन से सोता हूँ।। अक्सर रात में मैं तो।। तेरे सपने में रहता हूँ।। शुबह जब आँख खोलूँ तो।। बस तेरा दीदार करता हूँ ।। बहक जाता है मन मेरा ।। मैं जब महफ़िल में रहता हूँ।। मेरा न दर ठिकाना है।। मैं बस आवारा फिरता हूँ।। न मैं दीवाना हूँ तेरा ।। न पागल समझ मुझको।। Written by  कवि महराज शैलेश

"वंदना"

Image
स्वर की देवी माँ शारदे ।। तुम उपकार करो ।। मेरे अंधकार जीवन में ।। तुम ज्ञान ज्योति भरो।। तुम ही विद्या तुम ही स्वर हो।। मेरे जीवन की तुम ही लय हो।। तुम महारानी वीणावादनी हो ।। माँ मेरा उद्धार करो।।  .....स्वर की देवी ..... जल का जीवन,जीवन जल में।। तेरी आराधना है मेरे मन में ।। मेरी वंदना तेरे चरणों में ।। माँ मेरा कल्याण करो।। ......स्वर की देवी......... दूर खड़ा हूँ अज्ञानी हूँ।। सरल सहज ही मै तो पड़ा हूँ।। नाम तेरा मै जपता हूँ ।। माँ मेरी फरियाद सुनो।। ......स्वर की देवी माँ शारदे        तुम उपकार करो ।।। Written by  कवि महराज शैलेश जीवन परिचय                                                                                      शैलेश कुमार पांडेय                                                                                      पुत्र:  स्वर्गीय श्री देवनाथ पांडेय                                                                                      ग्राम बमरौली पुरवा                                                                                      पोस्ट बमरौली                       

"एक बूढ़ी माँ"

Image
एक मुस्कुराहट जो दिलों को जीत ले। एक मुस्कुराहट जो ग़मो को छीन ले।। एक कला है मुस्कुराहट जनाब। तू ये अदा अदप गर सीख ले।। एक बूढ़ी माँ आँगन में बैठी थी। चेहरे पे उदासी आँखों से रो रही थी।। एक मुस्कान को कैसे तरस रही थी। हृदय से कोमल मगर कठोर लग रही थी।। बेसक वो बूढ़ी माँ कमजोर लग रही थी। एक मुस्कान को बस दम भर रही थी।। जैसे जैसे शाम ढल रही थी। आँखों की रोशनी कम हो रही थी।। बेटे के इंतजार में कुछ सोच रही थी। उसके आते ही मुस्कुरा रही थी।। सब दर्द को दरकिनार कर रही थी। बेटे तू आ गया मुस्कुरा कर कह रही थी।। माँ को बेटे से कितनी खुशी थी। आँखों की रोशनी जैसे वापस आ रही थी।। समा मुस्कान का बांध रही थी। माँ मुस्कुरा कर प्यार कर रही थी।। Written by  कवि महराज शैलेश

"निंदा"(कविता)

Image
किसी की निंदा करना भी निंदनीय है। पर सही रास्ता दिखाना भी दंडनीय है।। कोई दरवाजा कभी देखा है कब्र में। क्या कोई जेब देखी है कफ़न में ।। तेरे मेरे हिसाब से चलती नही दुनिया। कोई है जो,उसके हिसाब से चलती है दुनिया।। बराबर का मौका देता है अच्छा कर या निंदा कर। छोड़ सारी बातों को गजल,लिख कोई कविता कर।। हर सांस में पहले तेरा नाम आता है। तेरी वफ़ा का रंग चाँद में नजर आता है।। पतझड़ में जो पत्ते सुख कर गिर जाते है। उन्हें फिर सावन कहाँ नजर आता है ।। Written by  कवि महराज शैलेश

"नारी"(कविता)

Image
  भारत की बेटी अजब शान निराली है। देखो कितनो पर भारी आज नारी है।। हिमालय सा ऊँचा नाम आज नारी है। हर क्षेत्र में हाथ बटाती आज नारी है।। उड़ान भरी तो कल्पना वो नारी है। हौसलों पे उसके दुनिया हिम्मत हारी है।। जिद पे आये तो किसी से न हारी है। कठिन को भी आसान करती आज नारी है।। घर संभालती ह्रदय विराजती नारी है। सामाजिक उत्थान प्रेरणा बनी नारी है।। नारी से ही नर है जग नही बिन नारी है। कोमल हृदय,कठोर, माँ ,भी एक नारी है।। जिसने पाला, मुझे सिखाया,वो भी नारी है। मैं कुछ नही सिवा उसके,मेरे जीवन की हानि है।। विचित्र इस दुनिया मे,सरल बस नारी है। दुनिया मे श्रेष्ठ ,सभी पर भारी आज नारी है।। Written by  कवि महराज शैलेश

"माँ"(कविता)

Image
ममता का साया था। माँ का दुलारा था।। माँ के जीवन मे। आँखों का तारा था।। तू ही समाया था। तुझको ही पाया था।। बड़ी भोली है तू माँ।  बड़ी प्यारी है तू माँ।। बड़ी निराली है तू माँ।  बड़ी ममतामई है तू माँ।। दुनिया तुझपे वारी है माँ।  मेरे जीवन के पथ पर है माँ।। मेरे मुसीबत में है तू माँ।  मेरे खुशियों में है तू माँ।। दिल तुम्हे याद करता है माँ।  खैर सबकी रखना है माँ।। मेरी तो दुनिया है माँ।  इस दुनिया से न्यारी है तू माँ।। फूलों से प्यारी है तू माँ। तू मुझमे समाई है तू माँ।। तेरी ममता से खुशियां पाई है मैंने माँ।। मेरी तकदीर तूने बनाई है माँ।  मेरे रोम-रोम में समाई है तू माँ।। हर धड़कन की धड़क में है तू माँ।। Written by  कवि महराज शैलेश

"अदम्य साहस है अभिलाषा"(कविता)

Image
 अभिलाषा की यही है परिभाषा। प्रेम समर्पण हो एक दूजे की आशा।। विस्वास अटूट हर दिल से हो नाता। मेरी आपकी सब की हो अभिलाषा।। बड़ा सुकून आराम सा लगता है। जब कोई अपना सा कहता है।। न समझ को भी समझना पड़ता है। दर्द में है फिर भी हँसना पड़ता है।। मुझे भी बड़ी अभिलाषा है। कलम की यही परिभाषा है।। तुम मुझे कुछ भी कहो जमाना। मैं बिगड़ा गीत,ग़ज़लों,का दीवाना।। फिर से भूली बिसरी अभिलाषा। मेरे सरल जीवन की परिभाषा।। अदम्य साहस है अभिलाषा। सत्य पथिक है अभिलाषा।। बच्चों की मिठाई है अभिलाषा। मांग का सिन्दूर है अभिलाषा।। प्यार अटूट है अभिलाषा। जीवन भर है अभिलाषा।। उम्मीद है अभिलाषा। परिपूर्ण है अभिलाषा।। Written by  कवि महराज शैलेश