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नदी

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रेत का मंजर बड़ा है,  दूर तक कोहरा घना है।  जिंदगी की चाह में,  हम तो खडे हैं राह में।  पेड पौधे फूल पत्ती,  दूर तक दिखते नहीं।  कमलदल या कुमुदिनी,  साथ में खिलते नहीं।  कल -कल करती थीं जो लहरें,  घाट वह सूना पड़ा है।  लहलहाते खेत थे जो,  आज वो बंजर पड़ा है।  तैरती थी जो नव यौवन,  खेलती अठखेलियाँ।  खोजती हैं आज उसको,  साथ की सहेलियाँ।  जीवन धारा थीं जो नदियाँ,  उनमें अब कूडा पड़ा है।  अम्रत रस की धार ताके,  गाँव में बूढा खड़ा है। Written by  सुरेश कुमार 'राजा'

"बाल श्रम"(कविता)

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न कोई भूख से मरता,  न कोई बेसहारा होता।  अगर हुक्मरानो का,  कोई अपना मरा होता।  न फसल आवारा पशु चरते,  न कोई किसान खेत में मरता।  अगर साहब का एक खेत भी   साथ में लगा होता।  न भीगता गेहूँ मण्डी में,  न चावल गोदाम में सडा होता।  अगर साहब के हिस्से का,  एक बोरा भी रखा होता।  कूड़े के ढेर में दबकर,  कोई बचपन नहीं मरता।  अगर भट्ठों की तपती आग में,  उनका भी बच्चा बाल श्रम कर रहा होता। Written by  सुरेश कुमार 'राजा'

"वीर"(कविता)

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वीर जो मारा गया है,  युद्ध के मैदान में।  हो रही है चर्चा उसकी,  देश के हर गाँव में।  जो हमारी नींद के खातिर , कभी सोया नहीं।  जख्म थे कितने मगर,  वो कभी रोया नहीं।  जो समुंदर लांघ करके,  जीत आता ही रहा।  पर्वतों की चोटियों में,  ध्वज लहराता ही रहा।  आज धोखे से किसी के,  काँटा चुभा है पाँव में।  हो रही है चर्चा उसकी,  देश के हर गाँव में।  सरहदों पर अब हमारी,  ताक में दुश्मन खड़ा है।  चीन पाकिस्तान मिलकर  नेपाल भी तनने लगा है। Written by  सुरेश कुमार 'राजा'

"प्रकृति"(कविता)

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तू सूक्ष्म रूप तू है विशाल,  तेरी ना कोई है मिशाल।  तेरा ना कोई आदि अन्त,  तुझमें ही हैं सब जीव जन्त।  तू पर्वत है तू सागर है,  झरनो से बहती गागर है।  तू पेड़ों में जड चेतन है,  तू प्राण वायु का निकेतन है।  सूरज चांद सितारा तू , धरती पानी अंगारा तू।  भूमण्डल तेरा है आकार,  घटते बढते तेरे प्रकार। Written by  सुरेश कुमार 'राजा'

"बेटी की अभिलाषा"(कविता)

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चाह नहीं मैं पूजी जाऊं घर बाबुल का छोड़ के जाऊं।  कोख में मां की मारी जाऊं,  भाई की सम्पति मैं पाऊं।  सिसक -सिसक कर  दुबक -दुबक कर,  कैसे अपनी जान बचाऊ।  रक्षक ही भक्षक बनते हैं,  अपना दुखड़ा किसे सुनाऊं।  चाह रही हूँ मैं कुछ बनना,  खेलू कूदू लिखना -पढना। सपनो का एक महल बनाकर छोटी सी गुड़िया बैठाकर।  झूला झूलू गीत मैं गाऊं,  बूढ़ी मां का हाथ बटाऊं।  भइया के संग कदम मिलाकर,  अपने पिता का मान बढाऊं। Written by  सुरेश कुमार 'राजा'

"जीवन का फलसफा"(कविता)

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जीत है  या हार है । जिन्दगी  उपहार है।  उम्र भर  जी लो इसे।  ये गम खुशी  त्यौहार है।  मिलना जुलना  या बिछडना, ये तो बस  व्यवहार है।  मौत को  मत गले लगाना।  ये ना उचित विचार है।  जीत है या हार है जिन्दगी उपहार है।  Written by  सुरेश कुमार 'राजा'

"माई"(कविता)

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 वो कौन सी गाडी थी,  जिसमें तू बैठ चली आई।  मैं गोद में बैठा था तेरी  उठ जाग मेरी माई।  तू भूखी थी तू प्यासी थी  मन में न तेरे उदासी थी।  तू बोली थी घर जाएंगे  फिर लिट्टी चोखा खाएगे।  तू दाल भात न खाई है  तुझे कैसी नींद सताई।  उठ जाग मेरी माई...  ये मुजफ्फरपुर स्टेशन है  उठ जाओ माँ क्या टेंशन है।  तू ट्रेन पकड कर लौट चली,  हमको भी साथ में ले आई।  अब गाँव हमारा पास में है  या दूर अभी बोलो माई।  वो कौन सी गाडी थी....  Written by  सुरेश कुमार 'राजा'

"ये कोरोना जब से आया है"(कविता)

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ये कोरोना जब से आया है,  दुनियां में संकट लाया है।  सब डरे हुए सब सहमे हैं,  मुंह बंद मास्क सब पहने हैं। वो गया था रोटी के खातिर,  छोटी बहना और भाई को। कुछ कपड़े लेकर आएगा,  विधवा बैठी भौजाई को। वाइरस देश में आ गया  सब काम धाम अब बन्द पड़े।  अब कैसे रोटी खाएगा,  कब मुन्ना लौट के आएगा।  माँ घर में बैठी रोती है,  मजबूरी कैसी होती है।  कोई पैदल चल कर आता है , रस्ते में जान गवांता है।  ये कोरोना जब से आया है...   Written by  सुरेश कुमार 'राजा'