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"चाल"(कविता)

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सतरंजी- विसात, दाव बाजी खेल है जिंदगी  सधे निशाने चाल चलो  वरना झमेल है जिंदगी !! हम बंदी मानव - मात्र  सलाख-ए जेल है जिंदगी    जिंदगी है रंगमंच भाव -भंगिमा  भिन्न- भिन्न, कदम-कदम पर कातिल-दुश्मन मिलते बन के मित्र -अभिन्न !! बिन पतवार के नाव  खेते जाना काम हमारा, भव पार लगाते भगवान लेकिन होता नाम हमारा ! भाग्य में लिखी मझधारें स्व-कर्मों से बदलना है सत्य डगर पर लेकिन हमें तीव्र-मन्द गति चलना है! पथ में कांटे मिले हजार दुश्मन बने चाहे संसार  मानना  नहीं  है  हार बस आगे बढ़ते जाना है बीच राह नहीं रुकना है बाधाओं से नहीं डरना है सधे चाल बस चलना  है!! हर  एक यहाँ अकेला है फिर भी जगत एक मेला है गम अथाह मिलते यहां बहुत कोशिशों उपरांत मंजिल-ए राह मिलते यहां ऊंच-नीच की दीवारें  तोड़  कर  गिराना है अपने या पराये सबसे भाईचारा निभाना है  नहीं किसी को छलना है सधे चाल बस चलना है !! Written by वीना उपाध्याय